20 सूरए ताहा
सूराए ताहा मक्के में नाज़िल हुआ और इसकी एक सौ पैतीस आयतें हैं
खु़दा के नाम से
शुरू करता हूँ जो बड़ा मेहरबान रहम वाला है
ऐ ता हा
(रसूलअल्लाह) 1 हमने तुम पर कु़रान इसलिए नाजि़ल नहीं किया कि
तुम (इस क़दर) मशक़्क़त उठाओ 2 मगर जो शख़्स खु़दा से डरता है उसके लिए नसीहत (क़रार दिया है) 3 (ये) उस शैह की तरफ़ से नाजि़ल हुआ है जिसने
ज़मीन और ऊँचे-ऊँचे आसमानों को पैदा किया 4 वही रहमान है जो अर्श पर (हुक्मरानी के लिए) आमादा व मुस्तईद है 5 जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है
और जो कुछ दोनों के बीच में है और जो कुछ ज़मीन के नीचे है (ग़रज़ सब कुछ) उसी का
है 6 और अगर तू पुकार कर बात करे (तो भी आहिस्ता करे
तो भी) वह यक़ीनन भेद और उससे ज़्यादा पोशीदा चीज़ को जानता है 7 अल्लाह (वह माबूद है कि) उसके सिवा कोइ माबूद
नहीं है (अच्छे-अच्छे) उसी के नाम हैं 8 और (ऐ रसूल) क्या तुम तक मूसा की ख़बर पहुँची है कि जब उन्होंने दूर से आग
देखी 9 तो अपने घर के लोगों से कहने लगे कि तुम लोग
(ज़रा यहीं) ठहरो मैंने आग देखी है क्या अजब है कि मैं वहाँ (जाकर) उसमें से एक
अँगारा तुम्हारे पास ले आऊँ या आग के पास किसी राह का पता पा जाऊँ 10 फिर जब मूसा आग के पास आए तो उन्हें आवाज आई 11 कि ऐ मूसा बेशक मैं ही तुम्हारा परवरदिगार हूँ
तो तुम अपनी जूतियाँ उतार डालो क्योंकि तुम (इस वक़्त) तुआ (नामी) पाक़ीज़ा चटियल
मैदान में हो 12 और मैंने तुमको पैग़म्बरी के वास्ते मुन्तखि़ब
किया (चुन लिया) है तो जो कुछ तुम्हारी तरफ़ वही की जाती है उसे कान लगा कर सुनो 13इसमें शक नहीं कि मैं ही वह अल्लाह हूँ कि मेरे सिवा कोई माबूद नहीं तो मेरी ही इबादत करो और मेरी याद के लिए नमाज़ बराबर पढ़ा करो 14 (क्योंकि) क़यामत ज़रूर आने वाली है और मैं उसे लामहौला छिपाए रखूँगा ताकि हर शख़्स (उसके ख़ौफ से नेकी करे) और जैसी कोशिश की है उसका उसे बदला दिया जाए 15 तो (कहीं) ऐसा न हो कि जो शख़्स उसे दिल से नहीं मानता और अपनी नफ़सियानी ख़्वाहिश के पीछे पड़ा वह तुम्हें इस (फिक्र) से रोक दे तो तुम तबाह हो जाओगे 16 और ऐ मूसा ये तुम्हारे दाहिने हाथ में क्या चीज़ है 17 अर्ज़ की ये तो मेरी लाठी है मैं उस पर सहारा करता हूँ और इससे अपनी बकरियों पर (और दरख़्तों की) पत्तियाँ झाड़ता हूँ और उसमें मेरे और भी मतलब हैं 18 फ़रमाया ऐ मूसा उसको ज़रा ज़मीन पर डाल तो दो मूसा ने उसे डाल दिया 19 तो फ़ौरन वह साँप बनकर दौड़ने लगा (ये देखकर मूसा भागे) 20 तो फ़रमाया कि तुम इसको पकड़ लो और डरो नहीं मैं अभी इसकी पहली सी सूरत फिर किए देता हूँ 21 और अपने हाथ को समेंट कर अपने बग़ल में तो कर लो (फिर देखो कि) वह बग़ैर किसी बीमारी के सफे़द चमकता दमकता हुआ निकलेगा ये दूसरा मौजिज़ा है 22 (ये) ताकि हम तुमको अपनी (कु़दरत की) बड़ी-बड़ी निशानियाँ दिखाएँ 23 अब तुम फ़िरऔन के पास जाओ उसने बहुत सर उठाया है 24 मूसा ने अर्ज़ की परवरदिगार (मैं जाता तो हूँ) मगर तू मेरे लिए मेरे सीने को कुशादा फरमा और दिलेर बना 25 और मेरा काम मेरे लिए आसान कर दे 26 और मेरी ज़बान से लुक़नत की गिरह खोल दे 27 ताकि लोग मेरी बात अच्छी तरह समझें और 28 मेरे कुनबे वालो में से मेरे भाई हारून 29 को मेरा वज़ीर बोझ बटाने वाला बना दे 30 उसके ज़रिए से मेरी पुश्त मज़बूत कर दे 31 और मेरे काम में उसको मेरा शरीक बना 32 ताकि हम दोनों (मिलकर) कसरत से तेरी तसबीह करें 33 और कसरत से तेरी याद करें 34 तू तो हमारी हालत देख ही रहा है 35 फ़रमाया ऐ मूसा तुम्हारी सब दरख़्वास्तें मंज़ूर की गई 36 और हम तो तुम पर एक बार और एहसान कर चुके हैं 37 जब हमने तुम्हारी माँ को इलहाम किया जो अब तुम्हें “वही” के ज़रिए से बताया जाता है 38 कि तुम इसे (मूसा को) सन्दूक़ में रखकर सन्दूक़ को दरिया में डाल दो फिर दरिया उसे ढकेल कर किनारे डाल देगा कि मूसा को मेरा दुशमन और मूसा का दुशमन (फ़िरऔन) उठा लेगा और मैंने तुम पर अपनी मोहब्बत को डाल दिया जो देखता (प्यार करता) ताकि तुम मेरी ख़ास निगरानी में पाले पोसे जाओ 39 (उस वक़्त) जब तुम्हारी बहन चली (और फिर उनके घर में आकर) कहने लगी कि कहो तो मैं तुम्हें ऐसी दाया बताऊँ कि जो इसे अच्छी तरह पाले तो(इस तदबीर से) हमने फिर तुमको तुम्हारी माँ के पास पहुँचा दिया ताकि उसकी आँखें ठन्डी रहें और तुम्हारी (जुदाई पर) कुढ़े नहीं और तुमने एक शख़्स (ख़बती) को मार डाला था और सख़्त परेशान थे तो हमने तुमको (इस) ग़म से नजात दी और हमने तुम्हारा अच्छी तरह इम्तिहान कर लिया फिर तुम कई बरस तक मदीने के लोगों में जाकर रहे ऐ मूसा फिर तुम (उम्र के) एक अन्दाजे़ पर आ गए नबूवत के क़ायल हुए 40 और मैंने तुमको अपनी रिसालत के वास्ते मुन्तख़ब किया 41 तुम अपने भाई समैत हमारे मौजिज़े लेकर जाओ और (देखो) मेरी याद में सुस्ती न करना 42 तुम दोनों फ़िरऔन के पास जाओ बेशक वह बहुत सरकश हो गया है 43 फिर उससे (जाकर) नरमी से बातें करो ताकि वह नसीहत मान ले या डर जाए 44 दोनों ने अर्ज़ की ऐ हमारे पालने वाले हम डरते हैं कि कहीं वह हम पर ज़्यादती (न) कर बैठे या और ज़्यादा सरकशी कर ले 45 फ़रमाया तुम डरो नहीं मैं तुम्हारे साथ हूँ (सब कुछ) सुनता और देखता हूँ 46 ग़रज़ तुम दोनों उसके पास जाओ और कहो कि हम आप के परवरदिगार के रसूल हैं तो बनी इसराइल को हमारे साथ भेज दीजिए और उन्हें सताइए नहीं हम आपके पास आपके परवरदिगार का मौजिज़ा लेकर आए हैं और जो राहे रास्त की पैरवी करे उसी के लिए सलामती है 47 हमारे पास खु़दा की तरफ से ये “वही” नाजि़ल हुई है कि यक़ीनन अज़ाब उसी शख़्स पर है जो (खु़दा की आयतों को) झुठलाए और उसके हुक्म से मुँह मोड़े 48 (ग़रज़ गए और कहा) फ़िरऔन ने पूछा ऐ मूसा आखि़र तुम दोनों का परवरदिगार कौन है 49 मूसा ने कहा हमारा परवरदिगार वह है जिसने हर चीज़ को उसके (मुनासिब) सूरत अता फरमाई फिर उसी ने जि़न्दगी बसर करने के तरीक़े बताए 50 फ़िरऔन ने पूछा भला अगले लोगों का हाल (तो बताओ) कि क्या हुआ 51 मूसा ने कहा इन बातों का इल्म मेरे परवरदिगार के पास एक किताब (लौहे महफूज़) में (लिखा हुआ) है मेरा परवरदिगार न बहकता है न भूलता है 52 वह वही है जिसने तुम्हारे (फ़ायदे के) वास्ते ज़मीन को बिछौना बनाया और तुम्हारे लिए उसमें राहें निकाली और उसी ने आसमान से पानी बरसाया फिर (खु़दा फरमाता है कि) हम ही ने उस पानी के ज़रिए से मुख़्तलिफ़ कि़स्मों की घासे निकाली 53 (ताकि) तुम खु़द भी खाओ और अपने चौपायों को भी चराओ कुछ शक नहीं कि इसमें अक़्लमन्दों के वास्ते (क़ुदरते खु़दा की) बहुत सी निशानियाँ हैं 54 हमने इसी ज़मीन से तुम को पैदा किया और (मरने के बाद) इसमें लौटा कर लाएँगे और उसी से दूसरी बार (क़यामत के दिन) तुमको निकाल खड़ा करेंगे 55 और मैंने फ़िरऔन को अपनी सारी निशानियाँ दिखा दी इस पर भी उसने सबको झुठला दिया और न माना 56 (और) कहने लगा ऐ मूसा क्या तुम हमारे पास इसलिए आए हो कि हम को हमारे मुल्क (मिस्र से) अपने जादू के ज़ोर से निकाल बाहर करो 57 अच्छा तो (रहो) हम भी तुम्हारे सामने ऐसा जादू पेश करते हैं फिर तुम अपने और हमारे दरमियान एक वक़्त मुक़र्रर करो कि न हम उसके खि़लाफ करे और न तुम और मुक़ाबला एक साफ़ खुले मैदान में हो 58 मूसा ने कहा तुम्हारे (मुक़ाबले) की मीयाद ज़ीनत (ईद) का दिन है और उस रोज़ सब लोग दिन चढ़े जमा किए जाँए 59 उसके बाद फ़िरऔन (अपनी जगह) लौट गया फिर अपने चलत्तर (जादू के सामान) जमा करने लगा फिर (मुक़ाबले को) आ मौजूद हुआ 60 मूसा ने (फ़िरऔनयो से) कहा तुम्हारा नास हो खु़दा पर झूठी-झूठी इफ़्तेरा पर्वाज़ियाँ न करो वरना वह अज़ाब (नाजि़ल करके) इससे तुम्हारा मलया मेट कर छोड़ेगा और (याद रखो कि) जिसने इफ़्तेरा पर्वाज़ियाँ की वह यकी़नन नामुराद रहा 61 इस पर वह लोग अपने काम में बाहम झगड़ने और सरगोशियाँ करने लगे 62 (आखि़र) वह लोग बोल उठे कि ये दोनों यक़ीनन जादूगर हैं और चाहते हैं कि अपने जादू (के ज़ोर) से तुम लोगों को तुम्हारे मुल्क से निकाल बाहर करें और तुम्हारे अच्छे ख़ासे मज़हब को मिटा छोड़ें 63 तो तुम भी खू़ब अपने चलत्तर (जादू वग़ैरह) दुरूस्त कर लो फिर परा (सफ़) बाँध के (उनके मुक़ाबले में) आ पड़ो और जो आज डर रहा हो वही फायज़ुल मराम रहा 64 ग़रज़ जादूगरों ने कहा (ऐ मूसा) या तो तुम ही (अपने जादू) फेंको और या ये कि पहले जो जादू फेंके वह हम ही हों 65 मूसा ने कहा (मैं नहीं डालूँगा) बल्कि तुम ही पहले डालो (ग़रज़ उन्होंने अपने करतब दिखाए) तो बस मूसा को उनके जादू (के ज़ोर से) ऐसा मालूम हुआ कि उनकी रस्सियाँ और उनकी छडि़याँ दौड़ रही हैं 66 तो मूसा ने अपने दिल में कुछ दहशत सी पाई 67 हमने कहा (मूसा) इस से डरो नहीं यक़ीनन तुम ही वर रहोगे 68 और तुम्हारे दाहिने हाथ में जो (लाठी) है उसे डाल तो दो कि जो करतब उन लोगों ने की है उसे हड़प कर जाए क्योंकि उन लोगों ने जो कुछ करतब की वह एक जादूगर की करतब है और जादूगर जहाँ जाए कामयाब नहीं हो सकता (ग़रज़ मूसा की लाठी ने) सब हड़प कर लिया (ये देखते ही) 69 वह सब जादूगर सजदे में गिर पड़े (और कहने लगे) कि हम मूसा और हारून के परवरदिगार पर ईमान ले आए 70 फ़िरऔन ने उन लोगों से कहा (हाए) इससे पहले कि हम तुमको इजाज़त दें तुम उस पर ईमान ले आए इसमें शक नहीं कि ये तुम सबका बड़ा (गुरू) है जिसने तुमको जादू सिखाया है तो मैं तुम्हारे एक तरफ़ के हाथ और दूसरी तरफ़ के पाँव ज़रूर काट डालूँगा और तुम्हें खु़रमों की शाख़ों पर सूली चढ़ा दूँगा और उस वक़्त तुमको (अच्छी तरह) मालूम हो जाएगा कि हम (दोनों) फरीक़ों से अज़ाब में ज़्यादा बढ़ा हुआ कौन और किसको क़याम ज़्यादा है 71 जादूगर बोले कि ऐसे वाजे़ए व रौशन मौजिज़ात जो हमारे सामने आए उन पर और जिस (खु़दा) ने हमको पैदा किया उस पर तो हम तुमको किसी तरह तरजीह नहीं दे सकते तो जो तुझे करना हो कर गुज़र तू बस दुनिया की (इसी ज़रा)सी जि़न्दगी पर हुकूमत कर सकता है 72 (और कहा) हम तो अपने परवरदिगार पर इसलिए ईमान लाए हैं ताकि हमारे वास्ते सारे गुनाह माफ़ कर दे और (ख़ास कर) जिस पर तूने हमें मजबूर किया था और खु़दा ही सबसे बेहतर है और (उसी को) सबसे ज़्यादा क़याम है 73 इसमें शक नहीं कि जो शख़्स मुजरिम होकर अपने परवरदिगार के सामने हाजि़र होगा तो उसके लिए यक़ीनन जहन्नुम (धरा हुआ) है जिसमें न तो वह मरे ही गा और न जि़न्दा ही रहेगा 74 (सिसकता रहेगा) और जो शख़्स उसके सामने ईमानदार हो कर हाजि़र होगा और उसने अच्छे-अच्छे काम भी किए होंगे तो ऐसे ही लोग हैं जिनके लिए बड़े-बड़े बुलन्द रूतबे हैं 75 वह सदाबहार बाग़ात जिनके नीचे नहरें जारी हैं वह लोग उसमें हमेशा रहेंगे और जो गुनाह से पाक व पाकीज़ा रहे उस का यही सिला है 76 और हमने मूसा के पास “वही” भेजी कि मेरे बन्दों (बनी इसराइल) को (मिस्र से) रातों रात निकाल ले जाओ फिर दरिया में (लाठी मारकर) उनके लिए एक सूखी राह निकालो और तुमको पीछा करने का न कोई खौ़फ रहेगा न (डूबने की) कोई दहशत 77 ग़रज़ फ़िरऔन ने अपने लशकर समैत उनका पीछा किया फिर दरिया (के पानी का रेला) जैसा कुछ उन पर छाया गया वह छा गया 78 और फ़िरऔन ने अपनी क़ौम को गुमराह (करके हलाक) कर डाला और उनकी हिदायत न की 79 ऐ बनी इसराइल हमने तुमको तुम्हारे दुश्मन (के पंजे) से छुड़ाया और तुम से (कोहेतूर) के दाहिने तरफ का वायदा किया और हम ही ने तुम पर मन व सलवा नाजि़ल किया 80 और (फ़रमाया) कि हमने जो पाक व पाक़ीज़ा रोज़ी तुम्हें दे रखी है उसमें से खाओ (पियो) और उसमें (किसी कि़स्म की) शरारत न करो वरना तुम पर मेरा अज़ाब नाजि़ल हो जाएगा और (याद रखो कि) जिस पर मेरा ग़ज़ब नाजि़ल हुआ तो वह यक़ीनन गुमराह (हलाक) हुआ (81) और जो शख़्स तौबा करे और ईमान लाए और अच्छे काम करे फिर साबित क़दम रहे तो हम उसको ज़रूर बख़्शने वाले हैं 82 फिर जब मूसा सत्तर आदमियों केा लेकर चले और खु़द आगे बढ़ आए तो हमने कहा कि (ऐ मूसा तुमने अपनी क़ौम से आगे चलने में क्यों जल्दी की) 83 अर्ज़ की वह भी तो मेरे ही पीछे चले आ रहे हैं और इसी लिए मैं जल्दी करके तेरे पास इसलिए आगे बढ़ आया हूँ ताकि तू (मुझसे) खु़श रहे 84 फ़रमाया तो हमने तुम्हारे (आने के बाद) तुम्हारी क़ौम का इम्तिहान लिया और सामरी ने उनको गुमराह कर छोड़ा 85 (तो मूसा) गुस्से में भरे पछताए हुए अपनी क़ौम की तरफ पलटे और आकर कहने लगे ऐ मेरी (कमबक़्त) क़ौम क्या तुमसे तुम्हारे परवरदिगार ने एक अच्छा वायदा (तौरेत देने का) न किया था तुम्हारे वायदे में अरसा लग गया या तुमने ये चाहा कि तुम पर तुम्हारे परवरदिगार का ग़ज़ब टूंट पड़े कि तुमने मेरे वायदे (खु़दा की परसतिश) के खि़लाफ किया 86 वह लोग कहने लगे हमने आपके वायदे के खि़लाफ नहीं किया बल्कि (बात ये हुई कि फ़िरऔन की) क़ौम के ज़ेवर के बोझे जो (मिस्र से निकलते वक़्त) हम पर लद गए थे उनको हम लोगों ने (सामरी के कहने से आग में) डाल दिया फिर सामरी ने भी डाल दिया 87 फिर सामरी ने उन लोगों के लिए (उसी जे़वर से) एक बछड़े की मूरत बनाई जिसकी आवाज़ भी बछड़े की सी थी उस पर बाज़ लोग कहने लगे यही तुम्हारा (भी) माबूद और मूसा का (भी) माबूद है मगर वह भूल गया है 88 भला इनको इतनी भी न सूझी कि ये बछड़ा न तो उन लोगों को पलट कर उन की बात का जवाब ही देता है और न उनका ज़रर ही उस के हाथ में है और न नफ़ा 89 और हारून ने उनसे पहले कहा भी था कि ऐ मेरी क़ौम तुम्हारा सिर्फ़ इसके ज़रिये से इम्तिहान किया जा रहा है और इसमें शक नहीं कि तम्हारा परवरदिगार (बस खु़दाए रहमान है) तो तुम मेरी पैरवी करो और मेरा कहा मानो 90 तो वह लोग कहने लगे जब तक मूसा हमारे पास पलट कर न आएँ हम तो बराबर इसकी परसतिश पर डटे बैठे रहेंगे 91 मूसा ने हारून की तरफ खि़ताब करके कहा ऐ हारून जब तुमने उनको देख लिया था गमुराह हो गए हैं 92 तो तुम्हें मेरी पैरवी (क़ता) करने को किसने मना किया तो क्या तुमने मेरे हुक्म की नाफ़रमानी की 93 हारून ने कहा ऐ मेरे माँजाए (भाई) मेरी दाढ़ी न पकडिऐ और न मेरे सर (के बाल) मैं तो उससे डरा कि (कहीं) आप (वापस आकर) ये (न) कहिए कि तुमने बनी इसराईल में फूट डाल दी और मेरी बात का भी ख़्याल न रखा 94 तब सामरी से कहने लगे कि ओ सामरी तेरा क्या हाल है 95 उसने (जवाब में) कहा मुझे वह चीज़ दिखाई दी जो औरों को न सूझी (जिबरील घोड़े पर सवार जा रहे थे) तो मैंने जिबरील फरिश्ते (के घोड़े) के निशाने क़दम की एक मुट्ठी (ख़ाक) की उठा ली फिर मैंने (बछड़े के क़ालिब में) डाल दी (तो वह बोलेने लगा और उस वक़्त मुझे मेरे नफ्स ने यही सुझाया 96 मूसा ने कहा चल (दूर हो) तेरे लिए (इस दुनिया की) जि़न्दगी में तो (ये सज़ा है) तू कहता फि़रेगा कि मुझे न छूना (वरना बुख़ार चढ़ जाएगा) और (आखि़रत में भी) यक़ीनी तेरे लिए (अज़ाब का) वायदा है कि हरगिज़ तुझसे खि़लाफ़ न किया जाएगा और तू अपने माबूद को तो देख जिस (की इबादत) पर तू डट बैठा था कि हम उसे यक़ीनन जलाकर (राख) कर डालेंगे फिर हम उसे तितिर बितिर करके दरिया में उड़ा देगें 97 तुम्हारा माबूद तो बस वही ख़ुदा है जिसके सिवा कोई और माबूद बरहक़ नहीं कि उसका इल्म हर चीज़ पर छा गया है 98 (ऐ रसूल) हम तुम्हारे सामने यूँ वाक़ेयात बयान करते हैं जो गुज़र चुके और हमने ही तुम्हारे पास अपनी बारगाह से कु़रआन अता किया 99 जिसने उससे मुँह फेरा वह क़यामत के दिन यक़ीनन (अपने बुरे आमाल का) बोझ उठाएंगे 100 और उसी हाल में हमेशा रहेंगे और क्या ही बुरा बोझ है क़यामत के दिन ये लोग उठाए होंगे 101 जिस दिन सूर फूँका जाएगा और हम उस दिन गुनाहगारों को (उनकी) आँखें मैली (अन्धी) करके (आमने-सामने) जमा करेंगे 102 (और) आपस में चुपके-चुपके कहते होंगे कि (दुनिया या क़ब्र में) हम लोग (बहुत से बहुत) नौ दस दिन ठहरे होंगे 103 जो कुछ ये लोग (उस दिन) कहेंगे हम खू़ब जानते हैं कि जो इनमें सबसे ज़्यादा होशियार होगा बोल उठेगा कि तुम बस (बहुत से बहुत) एक दिन ठहरे होगे 104 (और ऐ रसूल) तुम से लोग पहाड़ों के बारे में पूछा करते हैं (कि क़यामत के रोज़ क्या होगा) तो तुम कह दो कि मेरा परवरदिगार बिल्कुल रेज़ा रेज़ा करके उड़ा डालेगा 105 और ज़मीन को एक चटियल मैदान कर छोड़ेगा 106 कि (ऐ शख़्स) न तो तू उसमें मोड़ देखेगा और न ऊँच-नीच 107 उस दिन लोग एक पुकारने वाले इसराफ़ील की आवाज़ के पीछे (इस तरह सीधे) दौड़ पड़ेगे कि उसमें कुछ भी कज़ी न होगी और आवाज़े उस दिन खु़दा के सामने (इस तरह) घिघियाएगें कि तू घुनघुनाहट के सिवा और कुछ न सुनेगा 108 उस दिन किसी की सिफ़ारिश काम न आएगी मगर जिसको खु़दा ने इजाज़त दी हो और उसका बोलना पसन्द करे 109 जो कुछ उन लोगों के सामने है और जो कुछ उनके पीछे है (ग़रज़ सब कुछ) वह जानता है और ये लोग अपने इल्म से उसपर हावी नहीं हो सकते 110 और (क़यामत में) सारी (खु़दाई के) मुँह जि़न्दा और बाक़ी रहने वाले खु़दा के सामने झुक जाएँगे और जिसने जु़ल्म का बोझ (अपने सर पर) उठाया वह यक़ीनन नाकाम रहा 111 और जिसने अच्छे-अच्छे काम किए और वह मोमिन भी है तो उसको न किसी तरह की बेइन्साफ़ी का डर है और न किसी नुक़सान का 112 हमने उसको उसी तरह अरबी ज़बान का कु़रान नाजि़ल फ़रमाया और उसमें अज़ाब के तरह-तरह के वायदे बयान किए ताकि ये लोग परहेज़गार बनें या उनके मिज़ाज में इबरत पैदा कर दे 113 पस (दो जहाँ का) सच्चा बादशाह खु़दा बरतर व आला है और (ऐ रसूल) कु़रान के (पढ़ने) में उससे पहले कि तुम पर उसकी “वही” पूरी कर दी जाए जल्दी न करो और दुआ करो कि ऐ मेरे पालने वाले मेरे इल्म को और ज़्यादा फ़रमा 114 और हमने आदम से पहले ही एहद ले लिया था कि उस दरख़्त के पास न जाना तो आदम ने उसे तर्क कर दिया और हमने उनमें सबात व इसतेक़लाल न पाया 115 और जब हमने फ़रिश्तों से कहा कि आदम को सजदा करो तो सबने सजदा किया मगर शैतान ने इन्कार किया 116 तो मैंने (आदम से कहा) कि ऐ आदम ये यक़ीनी तुम्हारा और तुम्हारी बीवी का दुशमन है तो कहीं तुम दोनों को बेहिश्त से निकलवा न छोड़े तो तुम (दुनिया की) मुसीबत में फँस जाओ 117 कुछ शक नहीं कि (बेहिश्त में) तुम्हें ये आराम है कि न तो तुम यहाँ भूके रहोगे और न नँगे 118 और न यहाँ प्यासे रहोगे और न धूप खाओगे 119 तो शैतान ने उनके दिल में वसवसा डाला (और) कहा ऐ आदम क्या मैं तम्हें (हमेशगी की जि़न्दगी) का दरख़्त और वह सल्तनत जो कभी ज़ाएल न हो बता दूँ 120 चुनान्चे दोनों मियाँ बीबी ने उसी में से कुछ खाया तो उनका आगा पीछा उनपर ज़ाहिर हो गया और दोनों बेहिश्त के (दरख़्त के) पत्ते अपने आगे पीछे पर चिपकाने लगे और आदम ने अपने परवरदिगार की नाफ़रमानी की तो (राहे सवाब से) बेराह हो गए 121 इसके बाद उनके परवरदिगार ने बर गुज़ीदा किया फिर उनकी तौबा कु़बूल की और उनकी हिदायत की 122 फरमाया कि तुम दोनों बेहिश्त से नीचे उतर जाओ तुम में से एक का एक दुशमन है फिर अगर तुम्हारे पास मेरी तरफ से हिदायत पहुँचे तो (तुम) उसकी पैरवी करना क्योंकि जो शख़्स मेरी हिदायत पर चलेगा न तो गुमराह होगा और न मुसीबत में फँसेगा 123 और जिस शख़्स ने मेरी याद से मुँह फेरा तो उसकी जि़न्दगी बहुत तंगी में बसर होगी और हम उसको क़यामत के दिन अंधा बना के उठाएँगे 124 वह कहेगा इलाही मैं तो (दुनिया में) आँख वाला था तूने मुझे अन्धा करके क्यों उठाया 125 खु़दा फरमाएगा ऐसा ही (होना चाहिए) हमारी आयतें भी तो तेरे पास आई तो तू उन्हें भुला बैठा और इसी तरह आज तू भी भूला दिया जाएगा 126 और जिसने (हद से)तजावुज़ किया और अपने परवरदिगार की आयतों पर इमान न लाया उसको ऐसी ही बदला देगें और आखि़रत का अज़ाब तो यक़ीनी बहुत सख़्त और बहुत देर पा है 127 तो क्या उन (एहले मक्का) को उस (खु़दा) ने ये नहीं बता दिया था कि हमने उनके पहले कितने लोगों को हलाक कर डाला जिनके घरों में ये लोग चलते फिरते हैं इसमें शक नहीं कि उसमें अक़्लमंदों के लिए (कु़दरते खु़दा की) यक़ीनी बहुत सी निशानियाँ हैं 128 और (ऐ रसूल) अगर तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से पहले ही एक वायदा और अज़ाब का) एक वक़्त मुअय्यन न होता तो (उनकी हरकतों से) फ़िरऔन पर अज़ाब का आना लाज़मी बात थी 129 (ऐ रसूल) जो कुछ ये कुफ़्फ़ार बका करते हैं तुम उस पर सब्र करो और आफ़ताब निकलने के क़ब्ल और उसके ग़ुरूब होने के क़ब्ल अपने परवरदिगार की हम्दोसना के साथ तसबीह किया करो और कुछ रात के वक़्तों में और दिन के किनारों में तस्बीह करो ताकि तुम निहाल हो जाओ 130 और (ऐ रसूल) जो उनमें से कुछ लोगों को दुनिया की इस ज़रा सी जि़न्दगी की रौनक़ से निहाल कर दिया है ताकि हम उनको उसमें आज़माएँ तुम अपनी नज़रें उधर न बढ़ाओ और (इससे) तुम्हारे परवरदिगार की रोज़ी (सवाब) कहीं बेहतर और ज़्यादा पाएदार है 131 और अपने घर वालों को नमाज़ का हुक्म दो और तुम खु़द भी उसके पाबन्द रहो हम तुम से रोज़ी तो तलब करते नहीं (बल्कि) हम तो खु़द तुमको रोज़ी देते हैं और परहेज़गारी ही का तो अन्जाम बखै़र है 132 और (एहले मक्का) कहते हैं कि अपने परवरदिगार की तरफ से हमारे पास कोई मौजिज़ा हमारी मर्ज़ी के मुवाफिक़ क्यों नहीं लाते तो क्या जो (पेशीन गोइयाँ) अगली किताबों (तौरेत, इन्जील) में (इसकी) गवाह हैं वह भी उनके पास नहीं पहुँची 133 और अगर हम उनको इस रसूल से पहले अज़ाब से हलाक कर डालते तो ज़रूर कहते कि ऐ हमारे पालने वाले तूने हमारे पास (अपना) रसूल क्यों न भेजा तो हम अपने ज़लील व रूसवा होने से पहले तेरी आयतों की पैरवी ज़रूर करते 134 रसूल तुम कह दो कि हर शख़्स (अपने अंजाम कार का) मुन्तिज़र है तो तुम भी इन्तिज़ार करो फिर तो तुम्हें बहुत जल्द मालूम हो जाएगा कि सीधी राह वाले कौन हैं (और कज़ी पर कौन हैं) हिदायत याफ़ता कौन है और गुमराह कौन है। 135
(दुवा: ऐ हमारे पालने वाले जिस दिन (आमाल का) हिसाब होने लगे मुझको और मेरे माँ बाप को और सारे
ईमानदारों को तू बख्श दे। आमीन)