22 सूरए अल हज
सूरए अल हज
मक्का में नाजि़ल हुई है और इसकी अठहत्तर आयते हैं।
ख़ुदा के नाम से शुरू करता हूँ जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
ऐ लोगों अपने परवरदिगार से डरते रहो (क्योंकि) क़यामत का ज़लज़ला
(कोई मामूली नहीं) एक बड़ी (सख़्त) चीज़ है (1) जिस दिन तुम
उसे देख लोगे तो हर दूध पिलाने वाली (डर के मारे) अपने दूध पीते (बच्चे) को भूल
जायेगी और सारी हामला औरते अपने-अपने हमल (दैहशत से) गिरा देगी और (घबराहट में)
लोग तुझे मतवाले मालूम होंगे हालाँकि वह मतवाले नहीं हैं बल्कि खु़दा का अज़ाब
बहुत सख़्त है कि लोग बदहवास हो रहे हैं (2) और कुछ लोग ऐसे
भी हैं जो बग़ैर जाने खु़दा के बारे में (ख़्वाहम ख़्वाह) झगड़ते हैं और हर सरकश
शैतान के पीछे हो लेते हैं (3) जिन (की पेशानी) के ऊपर (ख़ते
तक़दीर से) लिखा जा चुका है कि जिसने उससे दोस्ती की हो तो ये यक़ीनन उसे गुमराह
करके छोड़ेगा और दोज़क़ के अज़ाब तक पहुँचा देगा (4) लोगों
अगर तुमको (मरने के बाद) दोबारा जी उठने में किसी तरह का शक है तो इसमें शक नहीं
कि हमने तुम्हें शुरू-शुरू मिट्टी से उसके बाद नुत्फे से उसके बाद जमे हुए ख़ून से
फिर उस लोथड़े से जो पूरा (सूडौल) हो या अधूरा हो पैदा किया ताकि तुम पर (अपनी
कु़दरत) ज़ाहिर करें (फिर तुम्हारा दोबारा जि़न्दा) करना क्या मुश्किल है और हम
औरतों के पेट में जिस (नुत्फे) को चाहते हैं एक मुद्दत मुअय्यन तक ठहरा रखते हैं
फिर तुमको बच्चा बनाकर निकालते हैं फिर (तुम्हें पालते हैं) ताकि तुम अपनी जवानी
को पहुँचो और तुममें से कुछ लोग तो ऐसे हैं जो (क़ब्ल बुढ़ापे के) मर जाते हैं और
तुम में से कुछ लोग ऐसे हैं जो नाकारा जि़न्दगी बुढ़ापे तक फेर लाए जाते हैं ताकि
समझने के बाद सठिया के कुछ भी (ख़ाक) न समझ सकें और तो ज़मीन को मुर्दा (बेकार
उफ़तदाह) देख रहा है फिर जब हम उस पर पानी बरसा देते हैं तो लहलहाने और उभरने लगती
है और हर तरह की ख़ु़शनुमा चीज़ें उगती है तो ये क़ुदरत के तमाशे इसलिए दिखाते हैं
ताकि तुम जानो (5) कि बेशक खु़दा बरहक़ है और (ये भी कि)
बेशक वही मुर्दों को जिलाता है और वह यक़ीनन हर चीज़ पर क़ादिर है (6) और क़यामत यक़ीनन आने वाली है इसमें कोई शक नहीं और बेशक जो लोग क़ब्रों
में हैं उनको खु़दा दोबारा जि़न्दा करेगा (7) और लोगों में
से कुछ ऐसे भी है जो बेजाने बूझे बे हिदायत पाए बगै़र रौशन किताब के (जो उसे राह
बताए) खु़दा की आयतों से मुँह मोड़े (8) (ख़्वाहम ख़्वाह)
खु़दा के बारे में लड़ने मरने पर तैयार है ताकि (लोगों को) ख़ुदा की राह से बहका
दे ऐसे (ना बुकार) के लिए दुनिया में (भी) रूसवाई है और क़यामत के दिन (भी) हम उसे
जहन्नुम के अज़ाब (का मज़ा) चखाएँगे (9) और उस वक़्त उससे
कहा जाएगा कि ये उन आमाल की सज़ा है जो तेरे हाथों ने पहले से किए हैं और बेशक
खु़दा बन्दों पर हरगिज़ जु़ल्म नहीं करता (10) और लोगों में
से कुछ ऐसे भी हैं जो एक किनारे पर (खड़े होकर) खु़दा की इबादत करता है तो अगर
उसको कोई फायदा पहुँच गया तो उसकी वजह से मुतमईन हो गया और अगर कहीं उस कोई मुसीबत
छू भी गयी तो (फौरन) मुँह फेर के (कुफ़्र की तरफ़) पलट पड़ा उसने दुनिया और आखे़रत
(दोनों) का घाटा उठाया यही तो सरीही घाटा है (11) खु़दा को
छोड़कर उन चीज़ों को (हाजत के वक़्त) बुलाता है जो न उसको नुक़सान ही पहुँचा सकते
हैं और न कुछ नफ़ा ही पहुँचा सकते हैं (12) यही तो पल्ले
दर्जे की गुमराही है और उसको अपनी हाजत रवाई के लिए पुकारता है जिस का नुक़सान
उसके नफ़े से ज़्यादा क़रीब है बेशक ऐसा मालिक भी बुरा और ऐसा रफीक़ भी बुरा (13)
बेशक जिन लोगों ने ईमान कु़बूल किया और अच्छे अच्छे काम किए उनको
(खु़दा बेहश्त के) उन (हरे-भरे) बाग़ात में ले जाकर दाखि़ल करेगा जिनके नीचे नहरें
जारी होगीं बेशक खु़दा जो चाहता है करता है (14) जो शख़्स
(गु़स्से में) ये बदगुमानी करता है कि दुनिया और आख़ेरत में खु़दा उसकी हरगि़ज मदद
न करेगा तो उसे चाहिए कि आसमान तक रस्सी ताने (और अपने गले में फाँसी डाल दे) फिर
उसे काट दे (ताकि घुट कर मर जाए) फिर देखिए कि जो चीज़ उसे गुस्से में ला रही थी
उसे उसकी तदबीर दूर दफ़ा कर देती है (15) (या नहीं) और हमने
इस कु़रआन को यूँ ही वाजे़ए व रौशन निशानियाँ (बनाकर) नाजि़ल किया और बेशक खु़दा
जिसकी चाहता है हिदायत करता है (16) इसमें शक नहीं कि जिन
लोगों ने ईमान कु़बूल किया (मुसलमान) और यहूदी और लामज़हब लोग और नुसैरा और मजूसी
(आतिशपरस्त) और मुशरेकीन (कुफ़्फ़ार) यक़ीनन खु़दा उन लोगों के दरमियान क़यामत के
दिन (ठीक ठीक) फ़ैसला कर देगा इसमें शक नहीं कि खु़दा हर चीज़ को देख रहा है (17)
क्या तुमने इसको भी नहीं देखा कि जो लोग आसमानों में हैं और जो लोग
ज़मीन में हैं और आफताब और माहताब और सितारे और पहाड़ और दरख़्त और चारपाए (ग़रज़
कुल मख़लूक़ात) और आदमियों में से बहुत से लोग सब खु़दा ही को सजदा करते हैं और
बहुत से ऐसे भी हैं जिन पर नाफ़रमानी की वजह से अज़ाब का (का आना) लाजि़म हो चुका
है और जिसको खु़दा ज़लील करे फिर उसका कोई इज़्ज़त देने वाला नहीं कुछ शक नहीं कि
खु़दा जो चाहता है करता है (18) सजदा ये दोनों (मोमिन व
काफिर) दो फरीक़ हैं आपस में अपने परवरदिगार के बारे में लड़ते हैं ग़रज़ जो लोग
काफि़र हो बैठे उनके लिए तो आग के कपड़े क़तअ किए गए हैं (वह उन्हें पहनाए जाएँगें
और) उनके सरों पर खौलता हुआ पानी उँडेला जाएगा (19) जिस (की
गर्मी) से जो कुछ उनके पेट में है (आँतें वग़ैरह) और खालें सब गल जाएँगी (20)
और उनके (मारने के) लिए लोहे के गुर्ज़ होंगे (21) कि जब सदमें के मारे चाहेंगे कि दोज़ख़ से निकल भागें तो (ग़ुर्ज़ मार के)
फिर उसके अन्दर ढकेल दिए जाएँगे और (उनसे कहा जाएगा कि) जलाने वाले अज़ाब के मज़े
चखो (22) जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे अच्छे काम भी
किए उनको खु़दा बेहश्त के ऐसे हरे-भरे बाग़ों में दाखि़ल फरमाएगा जिनके नीचे नहरे
जारी होगी उन्हें वहाँ सोने के कंगन और मोती (के हार) से सँवारा जाएगा और उनका
लिबास वहाँ रेशमी होगा (23) और (ये इस वजह से कि दुनिया में)
उन्हें अच्छी बात (कलमा ए तौहीद) की हिदायत की गई और उन्हें सज़ावार हम्द (खु़दा)
का रास्ता दिखाया गया (24) बेशक जो लोग काफिर हो बैठे और
खु़दा की राह से और मस्जिदें मोहतरम (ख़ाना ए काबा) से जिसे हमने सब लोगों के लिए
(मईद) बनाया है (और) इसमें शहरी और बैरूनी सबका हक़ बराबर है (लोगों को) रोकते हैं
(उनको) और जो शख़्स इसमें शरारत से गुमराही करे उसको हम दर्दनाक अज़ाब का मज़ा चखा
देंगे (25) और (ऐ रसूल वह वक़्त याद करो) जब हमने इबराहीम के
ज़रिये से इबराहीम के वास्ते ख़ानए काबा की जगह ज़ाहिर कर दी (और उनसे कहा कि)
मेरा किसी चीज़ को शरीक न बनाना और मेरे घर केा तवाफ़ और क़याम और रूकू सुजूद करने
वालों के वास्ते साफ सुथरा रखना (26) और लोगों को हज की ख़बर कर दो कि लोग तुम्हारे पास (ज़ूक दर ज़ूक)
ज़्यादा और हर तरह की दुबली (सवारियों पर जो राह दूर दराज़ तय करके आयी होगी
चढ़-चढ़ के) आ पहुँचेगें (27) ताकि अपने (दुनिया व आखे़रत
के) फायदो पर फायज़ हों और खु़दा ने जो जानवर चारपाए उन्हें अता फ़रमाए उनपर
(जि़बाह के वक़्त) चन्द मोअययन दिनों में खु़दा का नाम लें तो तुम लोग कु़रबानी के
गोश्त खु़द भी खाओ और भूखे मोहताज केा भी खिलाओ (28) फिर
लोगों को चाहिए कि अपनी-अपनी (बदन की) कशाफ्त दूर करें और अपनी नज़रें पूरी करें
और क़दीम (इबादत) ख़ाना ए काबा का तवाफ़ करें यही हुक्म है (29) और इसके अलावा जो शख़्स खु़दा की हुरमत वाली चीज़ों की ताज़ीम करेगा तो ये
उसके पवरदिगार के यहाँ उसके हक़ में बेहतर है और उन जानवरों के अलावा जो तुमसे
बयान किए जाँएगे कुल चारपाए तुम्हारे वास्ते हलाल किए गए तो तुम नापाक बुतों से
बचे रहो और लग़ो बातें गाने वग़ैरह से बचे रहो (30) निरे
खुरे अल्लाह के होकर (रहो) उसका किसी को शरीक न बनाओ और जिस शख़्स ने (किसी को)
खु़दा का शरीक बनाया तो गोया कि वह आसमान से गिर पड़ा फिर उसको (या तो दरम्यिान ही
से) कोई (मुरदा ख़्ववार) चिडि़या उचक ले गई या उसे हवा के झोंके ने बहुत दूर जा
फेंका (31) ये (याद रखो) और जिस शख़्स ने खु़दा की निशानियों
की ताज़ीम की तो कुछ शक नहीं कि ये भी दिलों की परहेज़गारी से हासिल होती है (32) और इन चार पायों में एक मईन मुद्दत तक तुम्हार लिये बहुत से फायदें
हैं फिर उनके जि़बाह होने की जगह क़दीम (इबादत) ख़ाना ए काबा है (33) और हमने तो हर उम्मत के वास्ते क़ुरबानी का तरीक़ा मुक़र्रर कर दिया है
ताकि जो मवेशी चारपाए खु़दा ने उन्हें अता किए हैं उन पर (जि़बाह के वक़्त) खु़दा
का नाम ले ग़रज़ तुम लोगों का माबूद (वही) यकता खु़दा है तो उसी के फरमाबरदार बन
जाओ (34) और (ऐ रसूल हमारे) गिड़गिड़ाने वाले बन्दों को
(बेहश्त की) खु़शख़बरी दे दो ये वो हैं कि जब (उनके सामने) खु़दा का नाम लिया जाता
है तो उनके दिल सहम जाते हैं और जब उनपर कोई मुसीबत आ पड़े तो सब्र करते हैं और
नमाज़ पाबन्दी से अदा करते हैं और जो कुछ हमने उन्हें दे रखा है उसमें से (राहे
खु़दा में) ख़र्च करते हैं (35) और कु़रबानी (मोटे गदबदे)
ऊँट भी हमने तुम्हारे वास्ते खु़दा की निशानियों में से क़रार दिया है इसमें
तुम्हारी बहुत सी भलाईयाँ हैं फिर उनका तांते का तांता बाँध कर हज करो और उस वक़्त
उन पर खु़दा का नाम लो फिर जब उनके दस्त व बाजू कटकर गिर पड़े तो उन्हीं से तुम
खु़द भी खाओ और क़नाअत पेशा फ़क़ीरों और माँगने वाले मोहताजों (दोनों) को भी खिलाओ
हमने यूँ इन जानवरों को तुम्हारा ताबेए कर दिया ताकि तुम शुक्रगुज़ार बनो (36)
खु़दा तक न तो हरगिज़ उनके गोश्त ही पहुँचेगे और न खू़न मगर (हाँ)
उस तक तुम्हारी परहेज़गारी अलबत्ता पहुँचेगी ख़ुदा ने जानवरों को (इसलिए) यूँ
तुम्हारे क़ाबू में कर दिया है ताकि जिस तरह खु़दा ने तुम्हें बनाया है उसी तरह
उसकी बड़ाई करो (37) और (ऐ रसूल) नेकी करने वालों को (हमेशा
की) ख़ु़शख़बरी दे दो इसमें शक नहीं कि खु़दा ईमानवालों से कुफ़्फ़ार को दूर दफा
करता रहता है खु़दा किसी बद दयानत नाशुक्रे को हरगिज़ दोस्त नहीं रखता (38)
जिन (मुसलमानों) से (कुफ़्फ़ार) लड़ते थे चूँकि वह (बहुत) सताए गए उस
वजह से उन्हें भी (जिहाद) की इजाज़त दे दी गई और खु़दा तो उन लोगों की मदद पर
यक़ीनन क़ादिर (व तवाना) है (39) ये वह (मज़लूम हैं जो
बेचारे) सिर्फ इतनी बात कहने पर कि हमारा परवरदिगार खु़दा है (नाहक़) अपने-अपने
घरों से निकाल दिए गये और अगर खु़दा लोगों को एक दूसरे से दूर दफ़ा न करता रहता तो
गिरजे और यहूदियों के इबादत ख़ाने और मजूस के इबादतख़ाने और मस्जिद जिनमें कसरत से
खु़दा का नाम लिया जाता है कब के कब ढहा दिए गए होते और जो शख़्स खु़दा की मदद
करेगा खु़दा भी अलबत्ता उसकी मदद ज़रूर करेगा बेशक खु़दा ज़रूर ज़बरदस्त ग़ालिब है
(40) ये वह लोग हैं कि अगर हम इन्हें रूए ज़मीन पर क़ाबू दे
दे तो भी यह लोग पाबन्दी से नमाजे अदा करेंगे और ज़कात देंगे और अच्छे-अच्छे काम
का हुक्म करेंगे और बुरी बातों से (लोगों को) रोकेंगे और (यूँ तो) सब कामों का
अन्जाम खु़दा ही के एख़्तेयार में है (41) और (ऐ रसूल) अगर
ये (कुफ़्फ़ार) तुमको झुठलाते हैं तो कोइ ताज्जुब की बात नहीं उनसे पहले नूह की
क़ौम और (क़ौमे आद और समूद) (42) और इबराहीम की क़ौम और लूत
की क़ौम (43) और मदीन के रहने वाले (अपने-अपने पैग़म्बरों
को) झुठला चुके हैं और मूसा (भी) झुठलाए जा चुके हैं तो मैंने काफिरों को चन्द ढील
दे दी फिर (आखि़र) उन्हें ले डाला तो तुमने देखा मेरा अज़ाब कैसा था (44) ग़रज़ कितनी बस्तियाँ हैं कि हम ने उन्हें बरबाद कर दिया और वह सरकश थीं
पस वह अपनी छतों पर ढही पड़ी हैं और कितने बेकार (उजडे़ कुएँ और कितने) मज़बूत बड़े-बड़े
ऊँचे महल (वीरान हो गए) (45) क्या ये लोग रूए ज़मीन पर चले
फिरे नहीं ताकि उनके लिए ऐसे दिल होते हैं जैसे हक़ बातों को समझते या उनके ऐसे
कान होते जिनके ज़रिए से (सच्ची बातों को) सुनते क्योंकि आँखें अंधी नहीं हुआ करती
बल्कि दिल जो सीने में है वही अन्धे हो जाया करते हैं (46) और
(ऐ रसूल) तुम से ये लोग अज़ाब के जल्द आने की तमन्ना रखते हैं और खु़दा तो हरगिज़
अपने वायदे के खि़लाफ नहीं करेगा और बेशक (क़यामत का) एक दिन तुम्हारे परवरदिगार
के नज़दीक तुम्हारी गिनती के हिसाब से एक हज़ार बरस के बराबर है (47) और कितनी बस्तियाँ हैं कि मैंने उन्हें (चन्द) मोहलत दी हालाँकि वह सरकश
थी फिर (आखि़र) मैंने उन्हें ले डाला और (सबको) मेरी तरफ लौटना है (48) (ऐ रसूल) तुम कह दो कि लोगों में तो सिर्फ तुमको खुल्लम-खुल्ला (अज़ाब से)
डराने वाला हूँ (49) पस जिन लोगों ने ईमान कु़बूल किया और
अच्छे-अच्छे काम किए (आखि़रत में) उनके लिए बक़शिश है और बेहिश्त की बहुत उम्दा
रोज़ी (50) और जिन लोगों ने हमारी आयतों (के झुठलाने में
हमारे) आजिज़ करने के वास्ते कोशिश की यही लोग तो जहन्नुमी हैं (51) और (ऐ रसूल) हमने तो तुमसे पहले जब कभी कोई रसूल और नबी भेजा तो ये ज़रूर
हुआ कि जिस वक़्त उसने (तबलीग़े एहकाम की) आरज़ू की तो शैतान ने उसकी आरज़ू में
(लोगों को बहका कर) क़लल डाल दिया फिर जो वस वसा शैतान डालता है खु़दा उसे मिटा
देता है फिर अपने एहकाम को मज़बूत करता है और खु़दा तो बड़ा वाकि़फकार दाना है (52)
और शैतान जो (वसवसा) डालता (भी) है तो इसलिए ताकि खु़दा उसे उन
लोगों के आज़माईश (का ज़रिया) क़रार दे जिनके दिलों में (कुफ़्र का) मर्ज़ है और
जिनके दिल सख़्त हैं और बेशक (ये) ज़ालिम मुशरेकीन पल्ले दरजे की मुख़ालेफ़त में
पड़े हैं (53) और (इसलिए भी) ताकि जिन लोगों को (कुतूबे
समादी का) इल्म अता हुआ है वह जान लें कि ये (वही) बेशक तुम्हारे परवरदिगार की तरफ
से ठीक ठीक (नाजि़ल) हुई है फिर (ये ख़्याल करके) इस पर वह लोग ईमान लाए फिर उनके
दिल खु़दा के सामने आजिज़ी करें और इसमें तो शक ही नहीं कि जिन लोगों ने ईमान
कु़बूल किया उनको खु़दा सीधी राह तक पहुँचा देता है (54) और
जो लोग काफ़िर हो बैठे वह तो कु़राआन की तरफ से हमेशा शक ही में पड़े रहेंगे यहाँ
तक कि क़यामत यकायक उनके सर पर आ मौजूद हो या (यूँ कहो कि) उनपर एक सख़्त मनहूस
दिन का अज़ाब नाजि़ल हुआ (55) उस दिन की हुकूमत तो ख़ास खु़दा
ही की होगी वह लोगों (के बाहमी एख़्तेलाफ) का फ़ैसला कर देगा तो जिन लोगों ने ईमान
कु़बूल किया और अच्छे काम किए हैं वह नेअमतों के (भरे) हुए बाग़ात (बेहश्त) में
रहेंगे (56) और जिन लोगों ने कुफ्र इक़तेयार किया और हमारी
आयतों को झुठलाया तो यही वह (कम्बख़्त) लोग हैं (57) जिनके
लिए ज़लील करने वाला अज़ाब है जिन लोगों ने खु़दा की राह में अपने देस छोडे़ फिर
शहीद किए गए या (आप अपनी मौत से) मर गए खु़दा उन्हें (आखि़रत में) ज़रूर उम्दा
रोज़ी अता फ़रमाएगा (58) और बेशक तमाम रोज़ी देने वालों में
खु़दा ही सबसे बेहतर है वह उन्हें ज़रूर ऐसी जगह (बेहिश्त) पहुँचा देगा जिससे वह
निहाल हो जाएँगे (59) और खु़दा तो बेशक बड़ा वाकि़फकार बुर्दवार है यही (ठीक) है और जो
शख़्स (अपने दुश्मन को) उतना ही सताए जितना ये उसके हाथों से सताया गया था उसके
बाद फिर (दोबारा दुशमन की तरफ़ से) उस पर ज़्यादती की जाए तो खु़दा उस मज़लूम की
ज़रूर मदद करेगा (60) बेशक खु़दा बड़ा माफ करने वाला बख़शने
वाला है ये (मदद) इस वजह से दी जाएगी कि खु़दा (बड़ा क़ादिर है वही) तो रात को दिन
में दाखि़ल करता है और दिन को रात में दाखि़ल करता है और इसमें भी शक नहीं कि
खु़दा सब कुछ जानता है (61) (और) इस वजह से (भी) कि यक़ीनन
खु़दा ही बरहक़ है और उसके सिवा जिनको लोग (वक़्ते मुसीबत) पुकारा करते हैं (सबके
सब) बातिल हैं और (ये भी) यक़ीनी (है कि) खु़दा ही (सबसे) बुलन्द मर्तबा बुज़ुर्ग
है (62) अरे क्या तूने इतना भी नहीं देखा कि खु़दा ही आसमान
से पानी बरसाता है तो ज़मीन सर सब्ज़ (व शादाब) हो जाती है बेशक खु़दा (बन्दों के
हाल पर) बड़ा मेहरबान वाकि़फ़कार है (63) जो कुछ आसमानों में
है और जो कुछ ज़मीन में है (ग़रज़ सब कुछ) उसी का है और इसमें तो शक ही नहीं कि
खु़दा (सबसे) बेपरवाह (और) सज़ावार हम्द है (64) क्या तूने
उस पर भी नज़र न डाली कि जो कुछ रूए ज़मीन में है सबको खु़दा ही ने तुम्हारे क़ाबू
में कर दिया है और कश्ती को (भी) जो उसके हुक्म से दरिया में चलती है और वही तो
आसमान को रोके हुए है कि ज़मीन पर न गिर पड़े मगर (जब) उसका हुक्म होगा (तो गिर
पडे़गा) इसमें शक नहीं कि खु़दा लोगों पर बड़ा मेहरबान व रहमवाला है (65) और वही तो क़ादिर मुत्तलिक़ है जिसने तुमको (पहली बार माँ के पेट में)
जिला उठाया फिर वही तुमको मार डालेगा फिर वही तुमको दोबारा जि़न्दगी देगा (66)
इसमें शक नहीं कि इन्सान बड़ा ही नाशुक्रा है (ऐ रसूल) हमने हर
उम्मत के वास्ते एक तरीक़ा मुक़र्रर कर दिया कि वह इस पर चलते हैं फिर तो उन्हें
इस दीन (इस्लाम) में तुम से झगड़ा न करना चाहिए और तुम (लोगों को) अपने परवरदिगार
की तरफ़ बुलाए जाओ (67) बेशक तुम सीधे रास्ते पर हो और अगर
(इस पर भी) लोग तुमसे झगड़ा करें तो तुम कह दो कि जो कुछ तुम कर रहे हो खु़दा उससे
खू़ब वाकि़फ़ है (68) जिन बातों में तुम बाहम झगड़ा करते थे
क़यामत के दिन ख़ुदा तुम लोगों के दरम्यिान (ठीक) फ़ैसला कर देगा (69) (ऐ रसूल) क्या तुम नहीं जानते कि जो कुछ आसमान और ज़मीन में है खु़दा यक़ीनन
जानता है उसमें तो शक नहीं कि ये सब (बातें) किताब (लौहे महफूज़) में (लिखी हुई
मौजूद) हैं (70) बेशक ये (सब कुछ) खु़दा पर आसान है और ये
लोग खु़दा को छोड़कर उन लोगों की इबादत करते हैं जिनके लिए न तो ख़ुदा ही ने कोई
सनद नाजि़ल की है और न उस (के हक़ होने) का खु़द उन्हें इल्म है और क़यामत में तो
ज़ालिमों का कोई मददगार भी नहीं होगा (71) और (ऐ रसूल) जब
हमारी वाज़ेए व रौशन आयतें उनके सामने पढ़ कर सुनाई जाती हैं तो तुम (उन) काफ़िरों
के चेहरों पर नाखु़शी के (आसार) देखते हो (यहाँ तक कि) क़रीब होता है कि जो लोग
उनको हमारी आयातें पढ़कर सुनाते हैं उन पर ये लोग हमला कर बैठे (ऐ रसूल) तुम कह दो
(कि) तो क्या मैं तुम्हें इससे भी कहीं बदतर चीज़ बता दूँ (अच्छा) तो सुन लो वह
जहन्नुम है जिसमें झोंकने का वायदा खु़दा ने काफि़रों से किया है (72) और वह क्या बुरा ठिकाना है लोगों एक मस्ल बयान की जाती है तो उसे कान लगा
के सुनो कि खु़दा को छोड़कर जिन लोगों को तुम पुकारते हो वह लोग अगरचे सब के सब इस
काम के लिए इकट्ठे भी हो जाएँ तो भी एक मक्खी तक पैदा नहीं कर सकते और कहीं मक्खी
कुछ उनसे छीन ले जाए तो उससे उसको छुड़ा नहीं सकते (अजब लुत्फ है) कि माँगने वाला
(आबिद) और जिससे माँग लिया (माबूद) दोनों कमज़ोर हैं (73) खु़दा
की जैसे क़द्र करनी चाहिए उन लोगों ने न की इसमें शक नहीं कि खु़दा तो बड़ा
ज़बरदस्त ग़ालिब है (74) खु़दा फरिश्तों में से बाज़ को अपने
एहकाम पहुँचाने के लिए मुन्तखि़ब कर लेता है (75) और (इसी
तरह) आदमियों में से भी बेशक खु़दा (सबकी) सुनता देखता है जो कुछ उनके सामने है और
जो कुछ उनके पीछे (हो चुका है) (खु़दा सब कुछ) जानता है (76) और तमाम उमूर की रूजूअ खु़दा ही की तरफ होती है ऐ ईमानवालों रूकू करो और
सजदे करो और अपने परवरदिगार की इबादत करो और नेकी करो (77) ताकि
तुम कामयाब हो और जो हक़ जिहाद करने का है खु़दा की राह में जिहाद करो उसी नें
तुमको बरगुज़ीदा किया और उमूरे दीन में तुम पर किसी तरह की सख़्ती नहीं की
तुम्हारे बाप इबराहीम के मजह़ब को (तुम्हारा मज़हब बना दिया उसी (खु़दा) ने
तुम्हारा पहले ही से मुसलमान (फरमाबरदार बन्दे) नाम रखा और कु़राआन में भी (तो
जिहाद करो) ताकि रसूल तुम्हारे मुक़ाबले में गवाह बने और तुम पाबन्दी से नामज़
पढ़ा करो और ज़कात देते रहो और खु़दा ही (के एहकाम) को मज़बूत पकड़ो वही तुम्हारा
सरपरस्त है तेा क्या अच्छा सरपरस्त है और क्या अच्छा मददगार है (78)
(दुवा: ऐ हमारे प्यारे अल्लाह जिस
दिन हमारे आमाल का हिसाब होने लगे मुझे मेरे माँ बाप और
खानदान वालो को और सारे ईमानवालो को तू अपनी खास रेहेमत से बख्श दे। आमीन)
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