Saturday, January 23, 2021

सूरए अल अम्बिया 21


21 सूरए अल अम्बिया

सूरए अल अम्बिया मक्का में नाजि़ल हुई है और उसकी एक सौ बारह आयतें हैं

खु़दा के नाम से शुरू करता हूँ जो बड़ा मेहरबान रहम वाला है
लोगों के पास उनका हिसाब (उसका वक़्त) आ पहुँचा और वो हैं कि गफ़लत में पड़े मुँह मोड़े ही जाते हैं (1) जब उनके परवरदिगार की तरफ से उनके पास कोई नया हुक्म आता है तो उसे सिर्फ कान लगाकर सुन लेते हैं और (फिर उसका) हँसी खेल उड़ाते हैं (2) उनके दिल (आखि़रत के ख़्याल से) बिल्कुल बेख़बर हैं और ये ज़ालिम चुपके-चुपके कानाफूसी किया करते हैं कि ये शख़्स (मोहम्मद कुछ भी नहीं) बस तुम्हारे ही सा आदमी है तो क्या तुम दीदा व दानिस्ता जादू में फँसते हो (3) (तो उस पर) रसूल ने कहा कि मेरा परवरदिगार जितनी बातें आसमान और ज़मीन में होती हैं खू़ब जानता है (फिर क्यों कानाफूसी करते हो) और वह तो बड़ा सुनने वाला वाकि़फ़कार है (4) (उस पर भी उन लोगों ने इकतेफ़ा न की) बल्कि कहने लगे (ये कु़रआन तो) ख्वाबहाय परीशाँ का मजमूआ है बल्कि उसने खु़द अपने जी से झूट-मूट गढ़ लिया है बल्कि ये शख़्स शायर है और अगर हक़ीकतन रसूल है) तो जिस तरह अगले पैग़म्बर मौजिज़ों के साथ भेजे गए थे (5) उसी तरह ये भी कोई मौजिज़ा (जैसा हम कहें) हमारे पास भला लाए तो सही इनसे पहले जिन बस्तियों को तबाह कर डाला (मौजिज़े भी देखकर तो) ईमान न लाए (6) तो क्या ये लोग ईमान लाएँगे और ऐ रसूल हमने तुमसे पहले भी आदमियों ही को (रसूल बनाकर) भेजा था कि उनके पास वहीभेजा करते थे तो अगर तुम लोग खु़द नहीं जानते हो तो आलिमों से पूँछकर देखो (7) और हमने उन (पैग़म्बरों) के बदन ऐसे नहीं बनाए थे कि वह खाना न खाएँ और न वह (दुनिया में) हमेशा रहने सहने वाले थे (8) फिर हमने उन्हें (अपना अज़ाब का) वायदा सच्चा कर दिखाया (और जब अज़ाब आ पहुँचा) तो हमने उन पैग़म्बरों को और जिस जिसको चाहा छुटकारा दिया और हद से बढ़ जाने वालों को हलाक कर डाला (9) हमने तो तुम लोगों के पास वह किताब (कु़रआआन) नाजि़ल की है जिसमें तुम्हारा (भी) जि़क्रे (ख़ैर) है तो क्या तुम लोग (इतना भी) नहीं समझते (10) और हमने कितनी बस्तियों को जिनके रहने वाले सरकश थे बरबाद कर दिया और उनके बाद दूसरे लोगों केा पैदा किया (11) तो जब उन लोगों ने हमारे अज़ाब की आहट पाई तो एका एकी भागने लगे (12) (हमने कहा) भागो नहीं और उन्हीं बस्तियों और घरों में लौट जाओ जिनमें तुम चैन करते थे ताकि तुमसे कुछ पूछगछ की जाए (13) वह लोग कहने लगे हाए हमारी शामत बेशक हम सरकश तो ज़रूर थे (14) ग़रज़ वह बराबर यही पड़े पुकारा किए यहाँ तक कि हमने उन्हें कटी हुयी खेती की तरह बिछा के ठन्डा करके ढेर कर दिया (15) और हमने आसमान और ज़मीन को और जो कुछ इन दोनों के दरमियान है बेकार लगो नहीं पैदा किया (16) अगर हम कोई खेल बनाना चाहते तो बेशक हम उसे अपनी तजवीज़ से बना लेते अगर हमको करना होता (मगर हमें शायान ही न था) (17) बल्कि हम तो हक़ को नाहक़ (के सर) पर खींच मारते हैं तो वह बातिल के सर को कुचल देता है फिर वो उसी वक़्त नेस्तो नाबूद हो जाता है और तुम पर अफ़सोस है कि ऐसी-ऐसी नाहक़ बातें बनाया करते हो (18) हालाँकि जो (फरिश्ते) आसमान और ज़मीन में हैं (सब) उसी के (बन्दे) हैं और जो (फरिश्ते) उस सरकार में हैं न तो वो उसकी इबादत की शेख़ी करते हैं और न थकते हैं (19) रात और दिन उसकी तस्बीह किया करते हैं (और) कभी काहिली नहीं करते (20) उन लोगों ने जो माबूद ज़मीन में बना रखे हैं क्या वही (लोगों को) जि़न्दा करेंगे (21) (बा ग़रज़ मुहाल) ज़मीन व आसमान में खु़दा कि सिवा चन्द माबूद होते तो दोनों कब के बरबाद हो गए होते तो जो बातें ये लोग अपने जी से (उसके बारे में) बनाया करते हैं खु़दा जो अर्श का मालिक है उन तमाम ऐबों से पाक व पाकीज़ा है (22) जो कुछ वो करता है उसकी पूछगछ नहीं हो सकती (23) (हाँ) और उन लोगों से बाज़ पुरस्त होगी क्या उन लोगों ने खु़दा को छोड़कर कुछ और माबूद बना रखे हैं (ऐ रसूल) तुम कहो कि भला अपनी दलील तो पेश करो जो मेरे (ज़माने में) साथ है उनकी किताब (कु़रआन) और जो लोग मुझ से पहले थे उनकी किताबें (तौरेत वग़ैरह) ये (मौजूद) हैं (उनमें खु़दा का शरीक बता दो) बल्कि उनमें से अक्सर तो हक़ (बात) को तो जानते ही नहीं (24) तो (जब हक़ का जि़क्र आता है) ये लोग मुँह फेर लेते हैं और (ऐ रसूल) हमने तुमसे पहले जब कभी कोई रसूल भेजा तो उसके पास वहीभेजते रहे कि बस हमारे सिवा कोई माबूद क़ाबिले परसतिश नहीं तो मेरी इबादत किया करो (25) और (एहले मक्का) कहते हैं कि खु़दा ने (फरिश्तों को) अपनी औलाद (बेटियाँ) बना रखा है (हालाँकि) वह उससे पाक व पकीज़ा हैं बल्कि (वो फ़रिश्ते) (खु़दा के) मोअजि़्ज़ बन्दे हैं (26) ये लोग उसके सामने बढ़कर बोल नहीं सकते और ये लोग उसी के हुक्म पर चलते हैं (27) जो कुछ उनके सामने है और जो कुछ उनके पीछे है (ग़रज़ सब कुछ) वो (खु़दा) जानता है और ये लोग उस शख़्स के सिवा जिससे खुदा राज़ी हो किसी की सिफारिश भी नहीं करते और ये लोग खुद उसके ख़ौफ से (हर वक़्त) डरते रहते हैं (28) और उनमें से जो कोई ये कह दे कि खु़दा नहीं (बल्कि) मैं माबूद हूँ तो वह (मरदूद बारगाह हुआ) हम उसको जहन्नुम की सज़ा देंगे और सरकशों को हम ऐसी ही सज़ा देते हैं (29) जो लोग काफ़िर हो बैठे क्या उन लोगों ने इस बात पर ग़ौर नहीं किया कि आसमान और ज़मीन दोनों बस्ता (बन्द) थे तो हमने दोनों को शिगाफ़ता किया (खोल दिया) और हम ही ने जानदार चीज़ को पानी से पैदा किया इस पर भी ये लोग ईमान न लाएँगे (30) और हम ही ने ज़मीन पर भारी बोझल पहाड़ बनाए ताकि ज़मीन उन लोगों को लेकर किसी तरफ झुक न पड़े और हम ने ही उसमें लम्बे-चैड़े रास्ते बनाए ताकि ये लोग अपने-अपने मंजि़लें मक़सूद को जा पहुँचे (31) और हम ही ने आसमान को छत बनाया जो हर तरह महफूज़ है और ये लोग उसकी आसमानी निशानियों से मुँह फेर रहे हैं (32) और वही वह (क़ादिरे मुतलक़) है जिसने रात और दिन और आफ़ताब और माहताब को पैदा किया कि सब के सब एक (एक) आसमान में पैर कर चक्कर लगा रहे हैं (33) और (ऐ रसूल) हमने तुमसे पहले भी किसी फर्द व बशर को सदा की जि़न्दगी नहीं दी तो क्या अगर तुम मर जाओगे तो ये लोग हमेशा जिया ही करेंगे (34) (हर शख़्स एक न एक दिन) मौत का मज़ा चखने वाला है और हम तुम्हें मुसीबत व राहत में इम्तेहान की ग़रज़ से आज़माते हैं और (आखि़र कार) हमारी ही तरफ लौटाए जाओगे (35) और (ऐ रसूल) जब तुम्हें कुफ़्फ़ार देखते हैं तो बस तुमसे मसखरापन करते हैं कि क्या यही हज़रत हैं जो तुम्हारे माबूदों को (बुरी तरह) याद करते हैं हालाँकि ये लोग खु़द खु़दा की याद से इन्कार करते हैं (तो इनकी बेवकू़फी पर हँसना चाहिए) (36) आदमी तो बड़ा जल्दबाज़ पैदा किया गया है मैं अनक़रीब ही तुम्हें अपनी (कु़दरत की) निशानियाँ दिखाऊँगा तो तुम मुझसे जल्दी की (धूम) न मचाओ (37) और लुत्फ़ तो ये है कि कहते हैं कि अगर सच्चे हो तो ये क़यामत का वायदा कब (पूरा) होगा (38) और जो लोग काफि़र हो बैठे काश उस वक़्त की हालत से आगाह होते (कि जहन्नुम की आग में खडे़ होंगे) और न अपने चेहरों से आग को हटा सकेंगे और न अपनी पीठ से और न उनकी मदद की जाएगी (39) (क़यामत कुछ जता कर तो आने से रही) बल्कि वह तो अचानक उन पर आ पड़ेगी और उन्हें हक्का बक्का कर देगी फिर उस वक़्त उसमें न उसके हटाने की मजाल होगी और न उन्हें दी ही जाएगी (40) और (ऐ रसूल) कुछ तुम ही नहीं तुमसे पहले पैग़म्बरों के साथ मसख़रापन किया जा चुका है तो उन पैग़म्बरों से मसख़रापन करने वालों को उस सख़्त अज़ाब ने आ घेर लिया जिसकी वह हँसी उड़ाया करते थे (41) (ऐ रसूल) तुम उनसे पूछो तो कि खु़दा (के अज़ाब) से (बचाने में) रात को या दिन को तुम्हारा कौन पहरा दे सकता है उस पर डरना तो दर किनार बल्कि ये लोग अपने परवरदिगार की याद से मुँह फेरते हैं (42) क्या हमारे सिवा उनके कुछ और परवरदिगार हैं कि जो उनको (हमारे अज़ाब से) बचा सकते हैं (वह क्या बचाएँगे) ये लोग खु़द अपनी तो मदद कर ही नहीं सकते और न हमारे अज़ाब से उन्हें पनाह दी जाएगी (43) बल्कि हम ही से उनको और उनके बुज़ुर्गों को आराम व चैन रहा यहाँ तक कि उनकी उमरें बढ़ गई तो फिर क्या ये लोग नहीं देखते कि हम रूए ज़मीन को चारों तरफ से क़ब्ज़ा करते और उसको फतेह करते चले आते हैं तो क्या (अब भी यही लोग कुफ़्फ़ारे मक्का) ग़ालिब और वर हैं (44) (ऐ रसूल) तुम कह दो कि मैं तो बस तुम लोगों को वहीके मुताबिक़ (अज़ाब से) डराता हूँ (मगर तुम लोग गोया बहरे हो) और बहरों को जब डराया जाता है तो वह पुकारने ही को नहीं सुनते (डरें क्या ख़ाक) (45) और (ऐ रसूल) अगर कहीं उनको तुम्हारे परवरदिगार के अज़ाब की ज़रा सी हवा भी लग गई तो बेसाक़ता बोल उठें हाय अफसोस वाक़ई हम ही ज़ालिम थे (46) और क़यामत के दिन तो हम (बन्दों के भले बुरे आमाल तौलने के लिए) इन्साफ़ की तराज़ू में खड़ी कर देंगे तो फिर किसी शख़्स पर कुछ भी ज़ुल्म न किया जाएगा और अगर राई के दाने के बराबर भी किसी का (अमल) होगा तो तुम उसे ला हाजि़र करेंगे और हम हिसाब करने के वास्ते बहुत काफ़ी हैं (47) और हम ही ने यक़ीनन मूसा और हारून को (हक़ व बातिल की) जुदा करने वाली किताब (तौरेत) और परहेज़गारों के लिए अज़सरतापा नूर और नसीहत अता की (48) जो बिना देखे अपने परवरदिगार से ख़ौफ खाते हैं और ये लोग रोज़े क़यामत से भी डरते हैं (49) और ये (कु़रआन भी) एक बाबरकत तज़किरा है जिसको हमने उतारा है तो क्या तुम लोग इसको नहीं मानते (50) और इसमें भी शक नहीं कि हमने इबराहीम को पहले ही से फ़हेम सलीम अता की थी और हम उन (की हालत) से खू़ब वाकि़फ थे (51) जब उन्होंने अपने (मुँह भोले) बाप और अपनी क़ौम से कहा ये मूरतें जिनकी तुम लोग मुजाबिरी करते हो आखि़र क्या (बला) है (52) वह लोग बोले (और तो कुछ नहीं जानते मगर) अपने बडे़ बूढ़ों को इनही की परसतिश करते देखा है (53) इबराहीम ने कहा यक़ीनन तुम भी और तुम्हारे बुर्जु़ग भी खुली हुई गुमराही में पड़े हुए थे (54) वह लोग कहने लगे तो क्या तुम हमारे पास हक़ बात लेकर आए हो या तुम भी (यूँ ही) दिल्लगी करते हो (55) इबराहीम ने कहा मज़ाक नहीं ठीक कहता हूँ कि तुम्हारे माबूद बुत नहीं बल्कि तुम्हारा परवरदिगार आसमान व ज़मीन का मालिक है जिसने उनको पैदा किया और मैं खु़द इस बात का तुम्हारे सामने गवाह हूँ (56) और अपने जी में कहा खु़दा की क़सम तुम्हारे पीठ फेरने के बाद में तुम्हारे बुतों के साथ एक चाल चलूँगा (57) चुनान्चे इब्राराहीम ने उन बुतों को (तोड़कर) चकनाचूर कर डाला मगर उनके बड़े बुत को (इसलिए रहने दिया) ताकि ये लोग ईद से पलटकर उसकी तरफ रूजू करें (58) (जब कुफ़्फ़ार को मालूम हुआ) तो कहने लगे जिसने ये गुस्ताख़ी हमारे माबूदों के साथ की है उसने यक़ीनी बड़ा ज़ुल्म किया (59) (कुछ लोग) कहने लगे हमने एक नौजवान को जिसको लोग इबराहीम कहते हैं उन बुतों का (बुरी तरह) जि़क्र करते सुना था (60) लोगों ने कहा तो अच्छा उसको सब लोगों के सामने (गिरफ़्तार करके) ले आओ ताकि वह (जो कुछ कहें) लोग उसके गवाह रहें (61) (ग़रज़ इबराहीम आए) और लोगों ने उनसे पूछा कि क्यों इबराहीम क्या तुमने माबूदों के साथ ये हरकत की है (62) इबराहीम ने कहा बल्कि ये हरकत इन बुतों (खु़दाओं) के बड़े (खु़दा) ने की है तो अगर ये बुत बोल सकते हों तो उनही से पूछ के देखो (63) इस पर उन लोगों ने अपने जी में सोचा तो (एक दूसरे से) कहने लगे बेशक तुम ही लोग खु़द बर सरे नाहक़़ हो (64) फिर उन लोगों के सर इसी गुमराही में झुका दिए गए (और तो कुछ बन न पड़ा मगर ये बोले) तुमको तो अच्छी तरह मालूम है कि ये बुत बोला नहीं करते (65) (फिर इनसे क्या पूछे) इबराहीम ने कहा तो क्या तुम लोग खु़दा को छोड़कर ऐसी चीज़ों की परसतिश करते हो जो न तुम्हें कुछ नफा ही पहुँचा सकती है और न तुम्हारा कुछ नुक़सान ही कर सकती है (66) तुफ़ है तुम पर उस चीज़ पर जिसे तुम खु़दा के सिवा पूजते हो तो क्या तुम इतना भी नहीं समझते (67) (आखि़र) वह लोग (बाहम) कहने लगे कि अगर तुम कुछ कर सकते हो तो इब्राहीम को आग में जला दो और अपने खु़दाओं की मदद करो (68) (ग़रज़) उन लोगों ने इबराहीम को आग में डाल दिया तो हमने हुक्म दिया ऐ आग तू इबराहीम पर बिल्कुल ठन्डी और सलामती का बाइस हो जा (69) (कि उनको कोई तकलीफ़ न पहुँचे) और उन लोगों ने इबराहीम के साथ चालबाज़ी करनी चाही थी तो हमने इन सब को नाकाम कर दिया (70) और हम ने ही इबराहीम और लूत को (सरकशों से) सही व सालिम निकालकर इस सर ज़मीन (शाम बैतुलमुक़द्दस) में जा पहुँचाया जिसमें हमने सारे जहाँन के लिए तरह-तरह की बरकत अता की थी (71) और हमने इबराहीम को इनाम में इसहाक़ (जैसा बैटा) और याकू़ब (जैसा पोता) इनायत फरमाया हमने सबको नेक बख़्त बनाया (72) और उन सबको (लोगों का) पेशवा बनाया कि हमारे हुक्म से (उनकी) हिदायत करते थे और हमने उनके पास नेक काम करने और नमाज़ पढ़ने और ज़कात देने की वहीभेजी थी और ये सब के सब हमारी ही इबादत करते थे (73) और लूत को भी हम ही ने फ़हमे सलीम और नबूवत अता की और हम ही ने उस बस्ती से जहाँ के लोग बदकारियाँ करते थे नजात दी इसमें शक नहीं कि वह लोग बड़े बदकार आदमी थे (74) और हमने लूत को अपनी रहमत में दाखि़ल कर लिया इसमें शक नहीं कि वह नेकोंकार बन्दों में से थे (75) और (ऐ रसूल लूत से भी) पहले (हमने) नूह को नबूवत पर फ़ायज़ किया जब उन्होंने (हमको) आवाज़ दी तो हमने उनकी (दुआ) सुन ली फिर उनको और उनके साथियों को (तूफ़ान की) बड़ी सख़्त मुसीबत से नजात दी (76) और जिन लोगों ने हमारी आयतों को झुठलाया था उनके मुक़ाबले में उनकी मदद की बेशक ये लोग (भी) बहुत बुऱे लोग थे तो हमने उन सबको डुबा मारा (77) और (ऐ रसूल इनको) दाऊद और सुलेमान का (वाक़्या याद दिलाओ) जब ये दोनों एक खेती के बारे में जिसमें रात के वक़्त कुछ लोगों की बकरियाँ (घुसकर) चर गई थी फैसला करने बैठे और हम उन लोगों के कि़स्से को देख रहे थे (कि बाहम इक़तेलाफ़ हुआ) (78) तो हमने सुलेमान को (इसका सही फ़ैसला समझा दिया) और (यूँ तो) सबको हम ही ने फहमे सलीम और इल्म अता किया और हम ही ने पहाड़ों को दाऊद का ताबेए कर दिया था था कि उनके साथ (खु़दा की) तस्बीह किया करते थे और परिन्दों को (भी ताबेए कर दिया था) और हम ही (ये अजाऐब) किया करते थे (79) और हम ही ने उनको तुम्हारी जंगी पोशिश (जि़राह) का बनाना सिखा दिया ताकि तुम्हें (एक दूसरे के) वार से बचाए तो क्या तुम (अब भी) उसके शुक्रगुज़ार न बनोगे (80) और (हम ही ने) बड़े ज़ोरों की हवा को सुलेमान का (ताबेए कर दिया था) कि वह उनके हुक्म से इस सरज़मीन (बैतुलमुक़द्दस) की तरफ चला करती थी जिसमें हमने तरह-तरह की बरकतें अता की थी और हम तो हर चीज़ से खू़ब वाकि़फ़ थे (और) है (81) और जिन्नात में से जो लोग (समन्दर में) ग़ोता लगाकर (जवाहरात निकालने वाले) थे और उसके अलावा और काम भी करते थे (सुलेमान का ताबेए कर दिया था) और हम ही उनके निगेहबान थे (82) (कि भाग न जाएँ) और (ऐ रसूल) अय्यूब (का कि़स्सा याद करो) जब उन्होंने अपने परवरदिगार से दुआ की कि (ख़ुदा वन्द) बीमारी तो मेरे पीछे लग गई है और तू तो सब रहम करने वालो से (बढ़ कर है मुझ पर तरस खा) (83) तो हमने उनकी दुआ कु़बूल की तो हमने उनका जो कुछ दर्द दुख था रफ़ा कर दिया और उन्हें उनके लड़के बाले बल्कि उनके साथ उतनी ही और भी महज़ अपनी ख़ास मेहरबानी से और इबादत करने वालों की इबरत के वास्ते अता किए (84) और (ऐ रसूल) इसमाईल और इदरीस और जु़लकिफ़ली (के वाक़यात से याद करो) ये सब साबिर बन्दे थे (85) और हमने उन सबको अपनी (ख़ास) रहमत में दाखि़ल कर लिया बेशक ये लोग नेक बन्दे थे (86) और ज़वालऐ नून (यूनुस को याद करो) जबकि गुस्से में आकर चलते हुए और ये ख़्याल न किया कि हम उन पर रोज़ी तंग न करेंगे (तो हमने उन्हें मछली के पेट में पहुँचा दिया) तो (घटाटोप) अँधेरे में (घबराकर) चिल्ला उठा कि (परवरदिगार) तेरे सिवा कोई माबूद नहीं तू (हर ऐब से) पाक व पाकीज़ा है बेशक मैं कुसूरवार हूँ (87) तो हमने उनकी दुआ कु़बूल की और उन्हें रंज से नजात दी और हम तो ईमानवालों को यूँ ही नजात दिया करते हैं (88) और ज़करिया (को याद करो) जब उन्होंने (मायूसी की हालत में) अपने परवरदिगार से दुआ की ऐ मेरे पालने वाले मुझे तन्हा (बे औलाद) न छोड़ और तू तो सब वारिसों से बेहतर है (89) तो हमने उनकी दुआ सुन ली और उन्हें यहया सा बेटा अता किया और हमने उनके लिए उनकी बीवी को अच्छी बना दिया इसमें शक नहीं कि ये सब नेक कामों में जल्दी करते थे और हमको बड़ी रग़बत और ख़ौफ के साथ पुकारा करते थे और हमारे आगे गिड़गिड़ाया करते थे (90) और (ऐ रसूल) उस बीबी को (याद करो) जिसने अपनी अज़मत की हिफाज़त की तो हमने उन (के पेट) में अपनी तरफ से रूह फूँक दी और उनको और उनके बेटे (ईसा) को सारे जहाँन के वास्ते (अपनी क़ुदरत की) निशानी बनाया (91) बेशक ये तुम्हारा दीन (इस्लाम) एक ही दीन है और मैं तुम्हारा परवरदिगार हूँ तो मेरी ही इबादत करो (92) और लोगों ने बाहम (इक़तेलाफ़ करके) अपने दीन को टुकड़े -टुकड़े कर डाला (हालाँकि) वो सब के सब हिरफिर के हमारे ही पास आने वाले हैं (93) (उस वक़्त फैसला हो जाएगा कि) तो जो शख़्स अच्छे-अच्छे काम करेगा और वह ईमानवाला भी हो तो उसकी कोशिश अकारत न की जाएगी और हम उसके आमाल लिखते जाते हैं (94) और जिस बस्ती को हमने तबाह कर डाला मुमकिन नहीं कि वह लोग क़यामत के दिन हिरफिर के से (हमारे पास) न लौटे (95) बस इतना (तवक्कुफ़ तो ज़रूर होगा) कि जब याजूद माजूद (हद ऐ सिकन्दरी) की कै़द से खोल दिए जाएँगे और ये लोग (ज़मीन की) हर बुलन्दी से दौड़ते हुए निकल पड़ें (96) और क़यामत का सच्चा वायदा नज़दीक आ जाए तो फिर काफ़िरों की आँखे एक दम से पथरा दी जाएँ (और कहने लगे) हाय हमारी शामत कि हम तो इस (दिन) से ग़फलत ही में (पड़े) रहे बल्कि (सच तो यूँ है कि अपने ऊपर) हम आप ज़ालिम थे (97) (उस दिन किहा जाएगा कि ऐ कुफ़्फ़ार) तुम और जिस चीज़ की तुम खु़दा के सिवा परसतिश करते थे यक़ीनन जहन्नुम की ईधन (जलावन) होंगे (और) तुम सबको उसमें उतरना पड़ेगा (98) अगर ये (सच्चे) माबूद होते तो उन्हें दोज़ख़ में न जाना पड़ता और (अब तो) सबके सब उसी में हमेशा रहेंगे (99) उन लोगों की दोज़ख़ में चिंघाड़ होगी और ये लोग (अपने शोर व ग़ुल में) किसी की बात भी न सुन सकेंगे (100) ज़बान अलबत्ता जिन लोगों के वास्ते हमारी तरफ से पहले ही भलाई (तक़दीर में लिखी जा चुकी) वह लोग दोज़ख़ से दूर ही दूर रखे जाएँगे (101) (यहाँ तक) कि ये लोग उसकी भनक भी न सुनेंगे और ये लोग हमेशा अपनी मनमाँगी मुरादों में (चैन से) रहेंगे (102) और उनको (क़यामत का) बड़े से बड़ा ख़ौफ़ भी दहशत में न लाएगा और फ़रिश्ते उन से खु़शी-खु़शी मुलाक़ात करेंगे और ये खु़शख़बरी देंगे कि यही वह तुम्हारा (खु़शी का) दिन है जिसका (दुनिया में) तुमसे वायदा किया जाता था (103) (ये) वह दिन (होगा) जब हम आसमान को इस तरह लपेटेंगे जिस तरह ख़तों का तूमार लपेटा जाता है जिस तरह हमने (मख़लूक़ात को) पहली बार पैदा किया था (उसी तरह) दोबारा (पैदा) कर छोड़ेगें (ये वह) वायदा (है जिसका करना) हम पर (लाजि़म) है और हम उसे ज़रूर करके रहेंगे (104) और हमने तो नसीहत (तौरेत) के बाद यक़ीनन जुबूर में लिख ही दिया था कि रूए ज़मीन के वारिस हमारे नेक बन्दे होंगे (105) इसमें शक नहीं कि इसमें इबादत करने वालों के लिए (एहकामें खु़दा की) तबलीग़ है (106) और (ऐ रसूल) हमने तो तुमको सारे दुनिया जहाँन के लोगों के हक़ में अज़सरतापा रहमत बनाकर भेजा (107) तुम कह दो कि मेरे पास तो बस यही वहीआई है कि तुम लोगों का माबूद बस यकता खु़दा है तो क्या तुम (उसके) फरमाबरदार बन्दे बनते हो (108) फिर अगर ये लोग (उस पर भी) मुँह फेरें तो तुम कह दो कि मैंने तुम सबको यकसाँ ख़बर कर दी है और मैं नहीं जानता कि जिस (अज़ाब) का तुमसे वायदा किया गया है क़रीब आ पहुँचा या (अभी) दूर है (109) इसमें शक नहीं कि वह उस बात को भी जानता है जो पुकार कर कही जाती है और जिसे तुम लोग छिपाते हो उससे भी खू़ब वाकि़फ है (110) और मैं ये भी नहीं जानता कि शायद ये (ताख़ीरे अज़ाब तुम्हारे) वास्ते इम्तिहान हो और एक मोअययन मुद्दत तक (तुम्हारे लिए) चैन हो (111) (आखि़र) रसूल ने दुआ की ऐ मेरे पालने वाले तू ठीक-ठीक मेरे और काफिरों के दरम्यिान फैसला कर दे और हमार परवरदिगार बड़ा मेहरबान है कि उसी से इन बातों में मदद माँगी जाती है जो तुम लोग बयान करते हो (112)

(दुवा: ऐ हमारे पालने वाले जिस दिन (आमाल का) हिसाब होने लगे मुझको और मेरे माँ बाप को और सारे ईमानदारों को तू बख्श दे। आमीन)

सूरए अल हज 22

 


22 सूरए अल हज

सूरए अल हज मक्का में नाजि़ल हुई है और इसकी अठहत्तर आयते हैं।

खुदा के नाम से शुरु करता हूँ जो बड़ा मेहरबान रहम वाला है
ऐ लोगों अपने परवरदिगार से डरते रहो (क्योंकि) क़यामत का ज़लज़ला (कोई मामूली नहीं) एक बड़ी (सख़्त) चीज़ है (1) जिस दिन तुम उसे देख लोगे तो हर दूध पिलाने वाली (डर के मारे) अपने दूध पीते (बच्चे) को भूल जायेगी और सारी हामला औरते अपने-अपने हमल (दैहशत से) गिरा देगी और (घबराहट में) लोग तुझे मतवाले मालूम होंगे हालाँकि वह मतवाले नहीं हैं बल्कि खु़दा का अज़ाब बहुत सख़्त है कि लोग बदहवास हो रहे हैं (2) और कुछ लोग ऐसे भी हैं जो बग़ैर जाने खु़दा के बारे में (ख़्वाहम ख़्वाह) झगड़ते हैं और हर सरकश शैतान के पीछे हो लेते हैं (3) जिन (की पेशानी) के ऊपर (ख़ते तक़दीर से) लिखा जा चुका है कि जिसने उससे दोस्ती की हो तो ये यक़ीनन उसे गुमराह करके छोड़ेगा और दोज़क़ के अज़ाब तक पहुँचा देगा (4) लोगों अगर तुमको (मरने के बाद) दोबारा जी उठने में किसी तरह का शक है तो इसमें शक नहीं कि हमने तुम्हें शुरू-शुरू मिट्टी से उसके बाद नुत्फे से उसके बाद जमे हुए ख़ून से फिर उस लोथड़े से जो पूरा (सूडौल) हो या अधूरा हो पैदा किया ताकि तुम पर (अपनी कु़दरत) ज़ाहिर करें (फिर तुम्हारा दोबारा जि़न्दा) करना क्या मुश्किल है और हम औरतों के पेट में जिस (नुत्फे) को चाहते हैं एक मुद्दत मुअय्यन तक ठहरा रखते हैं फिर तुमको बच्चा बनाकर निकालते हैं फिर (तुम्हें पालते हैं) ताकि तुम अपनी जवानी को पहुँचो और तुममें से कुछ लोग तो ऐसे हैं जो (क़ब्ल बुढ़ापे के) मर जाते हैं और तुम में से कुछ लोग ऐसे हैं जो नाकारा जि़न्दगी बुढ़ापे तक फेर लाए जाते हैं ताकि समझने के बाद सठिया के कुछ भी (ख़ाक) न समझ सकें और तो ज़मीन को मुर्दा (बेकार उफ़तदाह) देख रहा है फिर जब हम उस पर पानी बरसा देते हैं तो लहलहाने और उभरने लगती है और हर तरह की ख़ु़शनुमा चीज़ें उगती है तो ये क़ुदरत के तमाशे इसलिए दिखाते हैं ताकि तुम जानो (5) कि बेशक खु़दा बरहक़ है और (ये भी कि) बेशक वही मुर्दों को जिलाता है और वह यक़ीनन हर चीज़ पर क़ादिर है (6) और क़यामत यक़ीनन आने वाली है इसमें कोई शक नहीं और बेशक जो लोग क़ब्रों में हैं उनको खु़दा दोबारा जि़न्दा करेगा (7) और लोगों में से कुछ ऐसे भी है जो बेजाने बूझे बे हिदायत पाए बगै़र रौशन किताब के (जो उसे राह बताए) खु़दा की आयतों से मुँह मोड़े (8) (ख़्वाहम ख़्वाह) खु़दा के बारे में लड़ने मरने पर तैयार है ताकि (लोगों को) ख़ुदा की राह से बहका दे ऐसे (ना बुकार) के लिए दुनिया में (भी) रूसवाई है और क़यामत के दिन (भी) हम उसे जहन्नुम के अज़ाब (का मज़ा) चखाएँगे (9) और उस वक़्त उससे कहा जाएगा कि ये उन आमाल की सज़ा है जो तेरे हाथों ने पहले से किए हैं और बेशक खु़दा बन्दों पर हरगिज़ जु़ल्म नहीं करता (10) और लोगों में से कुछ ऐसे भी हैं जो एक किनारे पर (खड़े होकर) खु़दा की इबादत करता है तो अगर उसको कोई फायदा पहुँच गया तो उसकी वजह से मुतमईन हो गया और अगर कहीं उस कोई मुसीबत छू भी गयी तो (फौरन) मुँह फेर के (कुफ़्र की तरफ़) पलट पड़ा उसने दुनिया और आखे़रत (दोनों) का घाटा उठाया यही तो सरीही घाटा है (11) खु़दा को छोड़कर उन चीज़ों को (हाजत के वक़्त) बुलाता है जो न उसको नुक़सान ही पहुँचा सकते हैं और न कुछ नफ़ा ही पहुँचा सकते हैं (12) यही तो पल्ले दर्जे की गुमराही है और उसको अपनी हाजत रवाई के लिए पुकारता है जिस का नुक़सान उसके नफ़े से ज़्यादा क़रीब है बेशक ऐसा मालिक भी बुरा और ऐसा रफीक़ भी बुरा (13) बेशक जिन लोगों ने ईमान कु़बूल किया और अच्छे अच्छे काम किए उनको (खु़दा बेहश्त के) उन (हरे-भरे) बाग़ात में ले जाकर दाखि़ल करेगा जिनके नीचे नहरें जारी होगीं बेशक खु़दा जो चाहता है करता है (14) जो शख़्स (गु़स्से में) ये बदगुमानी करता है कि दुनिया और आख़ेरत में खु़दा उसकी हरगि़ज मदद न करेगा तो उसे चाहिए कि आसमान तक रस्सी ताने (और अपने गले में फाँसी डाल दे) फिर उसे काट दे (ताकि घुट कर मर जाए) फिर देखिए कि जो चीज़ उसे गुस्से में ला रही थी उसे उसकी तदबीर दूर दफ़ा कर देती है (15) (या नहीं) और हमने इस कु़रआन को यूँ ही वाजे़ए व रौशन निशानियाँ (बनाकर) नाजि़ल किया और बेशक खु़दा जिसकी चाहता है हिदायत करता है (16) इसमें शक नहीं कि जिन लोगों ने ईमान कु़बूल किया (मुसलमान) और यहूदी और लामज़हब लोग और नुसैरा और मजूसी (आतिशपरस्त) और मुशरेकीन (कुफ़्फ़ार) यक़ीनन खु़दा उन लोगों के दरमियान क़यामत के दिन (ठीक ठीक) फ़ैसला कर देगा इसमें शक नहीं कि खु़दा हर चीज़ को देख रहा है (17) क्या तुमने इसको भी नहीं देखा कि जो लोग आसमानों में हैं और जो लोग ज़मीन में हैं और आफताब और माहताब और सितारे और पहाड़ और दरख़्त और चारपाए (ग़रज़ कुल मख़लूक़ात) और आदमियों में से बहुत से लोग सब खु़दा ही को सजदा करते हैं और बहुत से ऐसे भी हैं जिन पर नाफ़रमानी की वजह से अज़ाब का (का आना) लाजि़म हो चुका है और जिसको खु़दा ज़लील करे फिर उसका कोई इज़्ज़त देने वाला नहीं कुछ शक नहीं कि खु़दा जो चाहता है करता है (18) सजदा ये दोनों (मोमिन व काफिर) दो फरीक़ हैं आपस में अपने परवरदिगार के बारे में लड़ते हैं ग़रज़ जो लोग काफि़र हो बैठे उनके लिए तो आग के कपड़े क़तअ किए गए हैं (वह उन्हें पहनाए जाएँगें और) उनके सरों पर खौलता हुआ पानी उँडेला जाएगा (19) जिस (की गर्मी) से जो कुछ उनके पेट में है (आँतें वग़ैरह) और खालें सब गल जाएँगी (20) और उनके (मारने के) लिए लोहे के गुर्ज़ होंगे (21) कि जब सदमें के मारे चाहेंगे कि दोज़ख़ से निकल भागें तो (ग़ुर्ज़ मार के) फिर उसके अन्दर ढकेल दिए जाएँगे और (उनसे कहा जाएगा कि) जलाने वाले अज़ाब के मज़े चखो (22) जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे अच्छे काम भी किए उनको खु़दा बेहश्त के ऐसे हरे-भरे बाग़ों में दाखि़ल फरमाएगा जिनके नीचे नहरे जारी होगी उन्हें वहाँ सोने के कंगन और मोती (के हार) से सँवारा जाएगा और उनका लिबास वहाँ रेशमी होगा (23) और (ये इस वजह से कि दुनिया में) उन्हें अच्छी बात (कलमा ए तौहीद) की हिदायत की गई और उन्हें सज़ावार हम्द (खु़दा) का रास्ता दिखाया गया (24) बेशक जो लोग काफिर हो बैठे और खु़दा की राह से और मस्जिदें मोहतरम (ख़ाना ए काबा) से जिसे हमने सब लोगों के लिए (मईद) बनाया है (और) इसमें शहरी और बैरूनी सबका हक़ बराबर है (लोगों को) रोकते हैं (उनको) और जो शख़्स इसमें शरारत से गुमराही करे उसको हम दर्दनाक अज़ाब का मज़ा चखा देंगे (25) और (ऐ रसूल वह वक़्त याद करो) जब हमने इबराहीम के ज़रिये से इबराहीम के वास्ते ख़ानए काबा की जगह ज़ाहिर कर दी (और उनसे कहा कि) मेरा किसी चीज़ को शरीक न बनाना और मेरे घर केा तवाफ़ और क़याम और रूकू सुजूद करने वालों के वास्ते साफ सुथरा रखना (26) और लोगों को हज की ख़बर कर दो कि लोग तुम्हारे पास (ज़ूक दर ज़ूक) ज़्यादा और हर तरह की दुबली (सवारियों पर जो राह दूर दराज़ तय करके आयी होगी चढ़-चढ़ के) आ पहुँचेगें (27) ताकि अपने (दुनिया व आखे़रत के) फायदो पर फायज़ हों और खु़दा ने जो जानवर चारपाए उन्हें अता फ़रमाए उनपर (जि़बाह के वक़्त) चन्द मोअययन दिनों में खु़दा का नाम लें तो तुम लोग कु़रबानी के गोश्त खु़द भी खाओ और भूखे मोहताज केा भी खिलाओ (28) फिर लोगों को चाहिए कि अपनी-अपनी (बदन की) कशाफ्त दूर करें और अपनी नज़रें पूरी करें और क़दीम (इबादत) ख़ाना ए काबा का तवाफ़ करें यही हुक्म है (29) और इसके अलावा जो शख़्स खु़दा की हुरमत वाली चीज़ों की ताज़ीम करेगा तो ये उसके पवरदिगार के यहाँ उसके हक़ में बेहतर है और उन जानवरों के अलावा जो तुमसे बयान किए जाँएगे कुल चारपाए तुम्हारे वास्ते हलाल किए गए तो तुम नापाक बुतों से बचे रहो और लग़ो बातें गाने वग़ैरह से बचे रहो (30) निरे खुरे अल्लाह के होकर (रहो) उसका किसी को शरीक न बनाओ और जिस शख़्स ने (किसी को) खु़दा का शरीक बनाया तो गोया कि वह आसमान से गिर पड़ा फिर उसको (या तो दरम्यिान ही से) कोई (मुरदा ख़्ववार) चिडि़या उचक ले गई या उसे हवा के झोंके ने बहुत दूर जा फेंका (31) ये (याद रखो) और जिस शख़्स ने खु़दा की निशानियों की ताज़ीम की तो कुछ शक नहीं कि ये भी दिलों की परहेज़गारी से हासिल होती है (32) और इन चार पायों में एक मईन मुद्दत तक तुम्हार लिये बहुत से फायदें हैं फिर उनके जि़बाह होने की जगह क़दीम (इबादत) ख़ाना ए काबा है (33) और हमने तो हर उम्मत के वास्ते क़ुरबानी का तरीक़ा मुक़र्रर कर दिया है ताकि जो मवेशी चारपाए खु़दा ने उन्हें अता किए हैं उन पर (जि़बाह के वक़्त) खु़दा का नाम ले ग़रज़ तुम लोगों का माबूद (वही) यकता खु़दा है तो उसी के फरमाबरदार बन जाओ (34) और (ऐ रसूल हमारे) गिड़गिड़ाने वाले बन्दों को (बेहश्त की) खु़शख़बरी दे दो ये वो हैं कि जब (उनके सामने) खु़दा का नाम लिया जाता है तो उनके दिल सहम जाते हैं और जब उनपर कोई मुसीबत आ पड़े तो सब्र करते हैं और नमाज़ पाबन्दी से अदा करते हैं और जो कुछ हमने उन्हें दे रखा है उसमें से (राहे खु़दा में) ख़र्च करते हैं (35) और कु़रबानी (मोटे गदबदे) ऊँट भी हमने तुम्हारे वास्ते खु़दा की निशानियों में से क़रार दिया है इसमें तुम्हारी बहुत सी भलाईयाँ हैं फिर उनका तांते का तांता बाँध कर हज करो और उस वक़्त उन पर खु़दा का नाम लो फिर जब उनके दस्त व बाजू कटकर गिर पड़े तो उन्हीं से तुम खु़द भी खाओ और क़नाअत पेशा फ़क़ीरों और माँगने वाले मोहताजों (दोनों) को भी खिलाओ हमने यूँ इन जानवरों को तुम्हारा ताबेए कर दिया ताकि तुम शुक्रगुज़ार बनो (36) खु़दा तक न तो हरगिज़ उनके गोश्त ही पहुँचेगे और न खू़न मगर (हाँ) उस तक तुम्हारी परहेज़गारी अलबत्ता पहुँचेगी ख़ुदा ने जानवरों को (इसलिए) यूँ तुम्हारे क़ाबू में कर दिया है ताकि जिस तरह खु़दा ने तुम्हें बनाया है उसी तरह उसकी बड़ाई करो (37) और (ऐ रसूल) नेकी करने वालों को (हमेशा की) ख़ु़शख़बरी दे दो इसमें शक नहीं कि खु़दा ईमानवालों से कुफ़्फ़ार को दूर दफा करता रहता है खु़दा किसी बद दयानत नाशुक्रे को हरगिज़ दोस्त नहीं रखता (38) जिन (मुसलमानों) से (कुफ़्फ़ार) लड़ते थे चूँकि वह (बहुत) सताए गए उस वजह से उन्हें भी (जिहाद) की इजाज़त दे दी गई और खु़दा तो उन लोगों की मदद पर यक़ीनन क़ादिर (व तवाना) है (39) ये वह (मज़लूम हैं जो बेचारे) सिर्फ इतनी बात कहने पर कि हमारा परवरदिगार खु़दा है (नाहक़) अपने-अपने घरों से निकाल दिए गये और अगर खु़दा लोगों को एक दूसरे से दूर दफ़ा न करता रहता तो गिरजे और यहूदियों के इबादत ख़ाने और मजूस के इबादतख़ाने और मस्जिद जिनमें कसरत से खु़दा का नाम लिया जाता है कब के कब ढहा दिए गए होते और जो शख़्स खु़दा की मदद करेगा खु़दा भी अलबत्ता उसकी मदद ज़रूर करेगा बेशक खु़दा ज़रूर ज़बरदस्त ग़ालिब है (40) ये वह लोग हैं कि अगर हम इन्हें रूए ज़मीन पर क़ाबू दे दे तो भी यह लोग पाबन्दी से नमाजे अदा करेंगे और ज़कात देंगे और अच्छे-अच्छे काम का हुक्म करेंगे और बुरी बातों से (लोगों को) रोकेंगे और (यूँ तो) सब कामों का अन्जाम खु़दा ही के एख़्तेयार में है (41) और (ऐ रसूल) अगर ये (कुफ़्फ़ार) तुमको झुठलाते हैं तो कोइ ताज्जुब की बात नहीं उनसे पहले नूह की क़ौम और (क़ौमे आद और समूद) (42) और इबराहीम की क़ौम और लूत की क़ौम (43) और मदीन के रहने वाले (अपने-अपने पैग़म्बरों को) झुठला चुके हैं और मूसा (भी) झुठलाए जा चुके हैं तो मैंने काफिरों को चन्द ढील दे दी फिर (आखि़र) उन्हें ले डाला तो तुमने देखा मेरा अज़ाब कैसा था (44) ग़रज़ कितनी बस्तियाँ हैं कि हम ने उन्हें बरबाद कर दिया और वह सरकश थीं पस वह अपनी छतों पर ढही पड़ी हैं और कितने बेकार (उजडे़ कुएँ और कितने) मज़बूत बड़े-बड़े ऊँचे महल (वीरान हो गए) (45) क्या ये लोग रूए ज़मीन पर चले फिरे नहीं ताकि उनके लिए ऐसे दिल होते हैं जैसे हक़ बातों को समझते या उनके ऐसे कान होते जिनके ज़रिए से (सच्ची बातों को) सुनते क्योंकि आँखें अंधी नहीं हुआ करती बल्कि दिल जो सीने में है वही अन्धे हो जाया करते हैं (46) और (ऐ रसूल) तुम से ये लोग अज़ाब के जल्द आने की तमन्ना रखते हैं और खु़दा तो हरगिज़ अपने वायदे के खि़लाफ नहीं करेगा और बेशक (क़यामत का) एक दिन तुम्हारे परवरदिगार के नज़दीक तुम्हारी गिनती के हिसाब से एक हज़ार बरस के बराबर है (47) और कितनी बस्तियाँ हैं कि मैंने उन्हें (चन्द) मोहलत दी हालाँकि वह सरकश थी फिर (आखि़र) मैंने उन्हें ले डाला और (सबको) मेरी तरफ लौटना है (48) (ऐ रसूल) तुम कह दो कि लोगों में तो सिर्फ तुमको खुल्लम-खुल्ला (अज़ाब से) डराने वाला हूँ (49) पस जिन लोगों ने ईमान कु़बूल किया और अच्छे-अच्छे काम किए (आखि़रत में) उनके लिए बक़शिश है और बेहिश्त की बहुत उम्दा रोज़ी (50) और जिन लोगों ने हमारी आयतों (के झुठलाने में हमारे) आजिज़ करने के वास्ते कोशिश की यही लोग तो जहन्नुमी हैं (51) और (ऐ रसूल) हमने तो तुमसे पहले जब कभी कोई रसूल और नबी भेजा तो ये ज़रूर हुआ कि जिस वक़्त उसने (तबलीग़े एहकाम की) आरज़ू की तो शैतान ने उसकी आरज़ू में (लोगों को बहका कर) क़लल डाल दिया फिर जो वस वसा शैतान डालता है खु़दा उसे मिटा देता है फिर अपने एहकाम को मज़बूत करता है और खु़दा तो बड़ा वाकि़फकार दाना है (52) और शैतान जो (वसवसा) डालता (भी) है तो इसलिए ताकि खु़दा उसे उन लोगों के आज़माईश (का ज़रिया) क़रार दे जिनके दिलों में (कुफ़्र का) मर्ज़ है और जिनके दिल सख़्त हैं और बेशक (ये) ज़ालिम मुशरेकीन पल्ले दरजे की मुख़ालेफ़त में पड़े हैं (53) और (इसलिए भी) ताकि जिन लोगों को (कुतूबे समादी का) इल्म अता हुआ है वह जान लें कि ये (वही) बेशक तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से ठीक ठीक (नाजि़ल) हुई है फिर (ये ख़्याल करके) इस पर वह लोग ईमान लाए फिर उनके दिल खु़दा के सामने आजिज़ी करें और इसमें तो शक ही नहीं कि जिन लोगों ने ईमान कु़बूल किया उनको खु़दा सीधी राह तक पहुँचा देता है (54) और जो लोग काफ़िर हो बैठे वह तो कु़राआन की तरफ से हमेशा शक ही में पड़े रहेंगे यहाँ तक कि क़यामत यकायक उनके सर पर आ मौजूद हो या (यूँ कहो कि) उनपर एक सख़्त मनहूस दिन का अज़ाब नाजि़ल हुआ (55) उस दिन की हुकूमत तो ख़ास खु़दा ही की होगी वह लोगों (के बाहमी एख़्तेलाफ) का फ़ैसला कर देगा तो जिन लोगों ने ईमान कु़बूल किया और अच्छे काम किए हैं वह नेअमतों के (भरे) हुए बाग़ात (बेहश्त) में रहेंगे (56) और जिन लोगों ने कुफ्र इक़तेयार किया और हमारी आयतों को झुठलाया तो यही वह (कम्बख़्त) लोग हैं (57) जिनके लिए ज़लील करने वाला अज़ाब है जिन लोगों ने खु़दा की राह में अपने देस छोडे़ फिर शहीद किए गए या (आप अपनी मौत से) मर गए खु़दा उन्हें (आखि़रत में) ज़रूर उम्दा रोज़ी अता फ़रमाएगा (58) और बेशक तमाम रोज़ी देने वालों में खु़दा ही सबसे बेहतर है वह उन्हें ज़रूर ऐसी जगह (बेहिश्त) पहुँचा देगा जिससे वह निहाल हो जाएँगे (59) और खु़दा तो बेशक बड़ा वाकि़फकार बुर्दवार है यही (ठीक) है और जो शख़्स (अपने दुश्मन को) उतना ही सताए जितना ये उसके हाथों से सताया गया था उसके बाद फिर (दोबारा दुशमन की तरफ़ से) उस पर ज़्यादती की जाए तो खु़दा उस मज़लूम की ज़रूर मदद करेगा (60) बेशक खु़दा बड़ा माफ करने वाला बख़शने वाला है ये (मदद) इस वजह से दी जाएगी कि खु़दा (बड़ा क़ादिर है वही) तो रात को दिन में दाखि़ल करता है और दिन को रात में दाखि़ल करता है और इसमें भी शक नहीं कि खु़दा सब कुछ जानता है (61) (और) इस वजह से (भी) कि यक़ीनन खु़दा ही बरहक़ है और उसके सिवा जिनको लोग (वक़्ते मुसीबत) पुकारा करते हैं (सबके सब) बातिल हैं और (ये भी) यक़ीनी (है कि) खु़दा ही (सबसे) बुलन्द मर्तबा बुज़ुर्ग है (62) अरे क्या तूने इतना भी नहीं देखा कि खु़दा ही आसमान से पानी बरसाता है तो ज़मीन सर सब्ज़ (व शादाब) हो जाती है बेशक खु़दा (बन्दों के हाल पर) बड़ा मेहरबान वाकि़फ़कार है (63) जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है (ग़रज़ सब कुछ) उसी का है और इसमें तो शक ही नहीं कि खु़दा (सबसे) बेपरवाह (और) सज़ावार हम्द है (64) क्या तूने उस पर भी नज़र न डाली कि जो कुछ रूए ज़मीन में है सबको खु़दा ही ने तुम्हारे क़ाबू में कर दिया है और कश्ती को (भी) जो उसके हुक्म से दरिया में चलती है और वही तो आसमान को रोके हुए है कि ज़मीन पर न गिर पड़े मगर (जब) उसका हुक्म होगा (तो गिर पडे़गा) इसमें शक नहीं कि खु़दा लोगों पर बड़ा मेहरबान व रहमवाला है (65) और वही तो क़ादिर मुत्तलिक़ है जिसने तुमको (पहली बार माँ के पेट में) जिला उठाया फिर वही तुमको मार डालेगा फिर वही तुमको दोबारा जि़न्दगी देगा (66) इसमें शक नहीं कि इन्सान बड़ा ही नाशुक्रा है (ऐ रसूल) हमने हर उम्मत के वास्ते एक तरीक़ा मुक़र्रर कर दिया कि वह इस पर चलते हैं फिर तो उन्हें इस दीन (इस्लाम) में तुम से झगड़ा न करना चाहिए और तुम (लोगों को) अपने परवरदिगार की तरफ़ बुलाए जाओ (67) बेशक तुम सीधे रास्ते पर हो और अगर (इस पर भी) लोग तुमसे झगड़ा करें तो तुम कह दो कि जो कुछ तुम कर रहे हो खु़दा उससे खू़ब वाकि़फ़ है (68) जिन बातों में तुम बाहम झगड़ा करते थे क़यामत के दिन ख़ुदा तुम लोगों के दरम्यिान (ठीक) फ़ैसला कर देगा (69) (ऐ रसूल) क्या तुम नहीं जानते कि जो कुछ आसमान और ज़मीन में है खु़दा यक़ीनन जानता है उसमें तो शक नहीं कि ये सब (बातें) किताब (लौहे महफूज़) में (लिखी हुई मौजूद) हैं (70) बेशक ये (सब कुछ) खु़दा पर आसान है और ये लोग खु़दा को छोड़कर उन लोगों की इबादत करते हैं जिनके लिए न तो ख़ुदा ही ने कोई सनद नाजि़ल की है और न उस (के हक़ होने) का खु़द उन्हें इल्म है और क़यामत में तो ज़ालिमों का कोई मददगार भी नहीं होगा (71) और (ऐ रसूल) जब हमारी वाज़ेए व रौशन आयतें उनके सामने पढ़ कर सुनाई जाती हैं तो तुम (उन) काफ़िरों के चेहरों पर नाखु़शी के (आसार) देखते हो (यहाँ तक कि) क़रीब होता है कि जो लोग उनको हमारी आयातें पढ़कर सुनाते हैं उन पर ये लोग हमला कर बैठे (ऐ रसूल) तुम कह दो (कि) तो क्या मैं तुम्हें इससे भी कहीं बदतर चीज़ बता दूँ (अच्छा) तो सुन लो वह जहन्नुम है जिसमें झोंकने का वायदा खु़दा ने काफि़रों से किया है (72) और वह क्या बुरा ठिकाना है लोगों एक मस्ल बयान की जाती है तो उसे कान लगा के सुनो कि खु़दा को छोड़कर जिन लोगों को तुम पुकारते हो वह लोग अगरचे सब के सब इस काम के लिए इकट्ठे भी हो जाएँ तो भी एक मक्खी तक पैदा नहीं कर सकते और कहीं मक्खी कुछ उनसे छीन ले जाए तो उससे उसको छुड़ा नहीं सकते (अजब लुत्फ है) कि माँगने वाला (आबिद) और जिससे माँग लिया (माबूद) दोनों कमज़ोर हैं (73) खु़दा की जैसे क़द्र करनी चाहिए उन लोगों ने न की इसमें शक नहीं कि खु़दा तो बड़ा ज़बरदस्त ग़ालिब है (74) खु़दा फरिश्तों में से बाज़ को अपने एहकाम पहुँचाने के लिए मुन्तखि़ब कर लेता है (75) और (इसी तरह) आदमियों में से भी बेशक खु़दा (सबकी) सुनता देखता है जो कुछ उनके सामने है और जो कुछ उनके पीछे (हो चुका है) (खु़दा सब कुछ) जानता है (76) और तमाम उमूर की रूजूअ खु़दा ही की तरफ होती है ऐ ईमानवालों रूकू करो और सजदे करो और अपने परवरदिगार की इबादत करो और नेकी करो (77) ताकि तुम कामयाब हो और जो हक़ जिहाद करने का है खु़दा की राह में जिहाद करो उसी नें तुमको बरगुज़ीदा किया और उमूरे दीन में तुम पर किसी तरह की सख़्ती नहीं की तुम्हारे बाप इबराहीम के मजह़ब को (तुम्हारा मज़हब बना दिया उसी (खु़दा) ने तुम्हारा पहले ही से मुसलमान (फरमाबरदार बन्दे) नाम रखा और कु़राआन में भी (तो जिहाद करो) ताकि रसूल तुम्हारे मुक़ाबले में गवाह बने और तुम पाबन्दी से नामज़ पढ़ा करो और ज़कात देते रहो और खु़दा ही (के एहकाम) को मज़बूत पकड़ो वही तुम्हारा सरपरस्त है तेा क्या अच्छा सरपरस्त है और क्या अच्छा मददगार है (78)

(दुवा: ऐ हमारे पालने वाले जिस दिन (आमाल का) हिसाब होने लगे मुझको और मेरे माँ बाप को और सारे ईमानदारों को तू बख्श दे। आमीन)


Tuesday, January 19, 2021

सूरए अल मोमिनून 23


23 सूरए अल मोमिनून

सूरए अल मोमिनून मक्का में नाजि़ल हुआ और इसमें एक सौ अठारह आयतें और छह रुकुउ हैं

खुदा के नाम से शुरु करता हूँ जो बड़ा मेहरबान रहम वाला है
अलबत्ता वह इमान लाने वाले रस्तगार हुए (1) जो अपनी नमाज़ों में (खुदा के सामने) गिड़गिड़ाते हैं (2) और जो बेहूदा बातों से मुँह फेरे रहते हैं (3) और जो ज़कात (अदा) किया करते हैं (4) और जो (अपनी) शर्मगाहों को (हराम से) बचाते हैं (5) मगर अपनी बीबियों से या अपनी ज़र ख़रीद लौनडियों से कि उन पर हरगिज़ इल्ज़ाम नहीं हो सकता (6) पस जो शख़्स उसके सिवा किसी और तरीके़ से शहवत परस्ती की तमन्ना करे तो ऐसे ही लोग हद से बढ़ जाने वाले हैं (7) और जो अपनी अमानतों और अपने एहद का लिहाज़ रखते हैं (8) और जो अपनी नमाज़ों की पाबन्दी करते हैं (9) (आदमी की औलाद में) यही लोग सच्चे वारिस है (10) जो बेहिश्त बरीं का हिस्सा लेगें (और) यही लोग इसमें हमेशा(जिन्दा) रहेंगे (11) और हमने आदमी को गीली मिट्टी के जौहर से पैदा किया (12) फिर हमने उसको एक महफूज़ जगह (औरत के रहम में) नुत्फ़ा बना कर रखा (13) फिर हम ही ने नुतफ़े को जमा हुआ ख़ून बनाया फिर हम ही ने मुनजमिद खू़न को गोश्त का लोथड़ा बनाया हम ही ने लोथडे़ की हड्डियाँ बनायीं फिर हम ही ने हड्डियों पर गोश्त चढ़ाया फिर हम ही ने उसको (रुह डालकर) एक दूसरी सूरत में पैदा किया तो (सुबहान अल्लाह) ख़ुदा बा बरकत है जो सब बनाने वालो से बेहतर है (14)
फिर इसके बाद यक़ीनन तुम सब लोगों को (एक न एक दिन) मरना है (15) इसके बाद क़यामत के दिन तुम सब के सब कब्रों से उठाए जाओगे (16) और हम ही ने तुम्हारे ऊपर तह ब तह आसमान बनाए और हम मख़लूक़ात से बेख़बर नही है (17) और हमने आसमान से एक अन्दाजे़ के साथ पानी बरसाया फिर उसको ज़मीन में (हसब मसलहत) ठहराए रखा और हम तो यक़ीनन उसके ग़ाएब कर देने पर भी क़ाबू रखते है (18) फिर हमने उस पानी से तुम्हारे वास्ते खजूरों और अँगूरों के बाग़ात बनाए कि उनमें तुम्हारे वास्ते (तरह तरह के) बहुतेरे मेवे (पैदा होते) हैं उनमें से बाज़ को तुम खाते हो (19) और (हम ही ने ज़ैतून का) दरख़्त (पैदा किया) जो तूरे सीना (पहाड़) में (कसरत से) पैदा होता है जिससे तेल भी निकलता है और खाने वालों के लिए सालन भी है (20) और उसमें भी शक नहीं कि तुम्हारे वास्ते चैपायों में भी इबरत की जगह है और (ख़ाक बला) जो कुछ उनके पेट में है उससे हम तुमको दूध पिलाते हैं और जानवरों में तो तुम्हारे और भी बहुत से फायदे हैं और उन्हीं में से बाज़ तुम खाते हो (21) और उन्हें जानवरों और कश्तियों पर चढे़ चढ़े फिरते भी हो (22) और हमने नूह को उनकी क़ौम के पास पैग़म्बर बनाकर भेजा तो नूह ने (उनसे) कहा ऐ मेरी क़ौम खु़दा ही की इबादत करो उसके सिवा कोई तुम्हारा माबूद नहीं तो क्या तुम (उससे) डरते नहीं हो (23) तो उनकी क़ौम के सरदारों ने जो काफ़िर थे कहा कि ये भी तो बस (आखि़र) तुम्हारे ही सा आदमी है (मगर) इसकी तमन्ना ये है कि तुम पर बुज़ुर्गी हासिल करे और अगर खु़दा (पैग़म्बर ही न भेजना) चाहता तो फरिश्तों को नाजि़ल करता हम ने तो (भाई) ऐसी बात अपने अगले बाप दादाओं में (भी होती) नहीं सुनी (24) हो न हों बस ये एक आदमी है जिसे जुनून हो गया है ग़रज़ तुम लोग एक (ख़ास) वक़्त तक (इसके अन्जाम का) इन्तेज़ार देखो (25) नूह ने (ये बातें सुनकर) दुआ की ऐ मेरे पलने वाले मेरी मदद कर (26) इस वजह से कि उन लोगों ने मुझे झुठला दिया तो हमने नूह के पास वहीभेजी कि तुम हमारे सामने हमारे हुक्म के मुताबिक़ कश्ती बनाना शुरु करो फिर जब कल हमारा अज़ाब आ जाए और तनूर (से पानी) उबलने लगे तो तुम उसमें हर किस्म (के जानवरों में) से (नर व मादा) दो दो का जोड़ा और अपने लड़के बालों को बिठा लो मगर उन में से जिसकी निस्बत (ग़रक़ होने का) पहले से हमारा हुक्म हो चुका है (उन्हें छोड़ दो) और जिन लोगों ने (हमारे हुकम से) सरकशी की है उनके बारे में मुझसे कुछ कहना (सुनना) नहीं क्योंकि ये लोग यक़ीनन डूबने वाले है (27) ग़रज़ जब तुम अपने हमराहियों के साथ कश्ती पर दुरुस्त बैठो तो कहो तमाम हम्द व सना का सज़ावार खुदा ही है जिसने हमको ज़ालिम लोगों से नजात दी (28) और दुआ करो कि ऐ मेरे पालने वाले तू मुझको (दरख़्त के पानी की) बा बरकत जगह में उतारना और तू तो सब उतारने वालो से बेहतर है (29) इसमें शक नहीं कि उसमे (हमारी क़ुदरत की) बहुत सी निशानियाँ हैं और हमको तो बस उनका इम्तिहान लेना मंज़ूर था (30) फिर हमने उनके बाद एक और क़ौम को (समूद) को पैदा किया (31) और हमने उनही में से (एक आदमी सालेह को) रसूल बनाकर उन लोगों में भेजा (और उन्होंने अपनी क़ौम से कहा) कि ख़ुदा की इबादत करो उसके सिवा कोई तुम्हारा माबूद नहीं तो क्या तुम (उससे डरते नही हो) (32) और उनकी क़ौम के चन्द सरदारों ने जो काफिर थे और (रोज़) आखि़रत की हाजि़री को भी झुठलाते थे और दुनिया की (चन्द रोज़ा) जि़न्दगी में हमने उन्हें सरवत भी दे रखी थी आपस में कहने लगे (अरे) ये तो बस तुम्हारा ही सा आदमी है जो चीज़े तुम खाते वही ये भी खाता है और जो चीज़े तुम पीते हो उन्हीं में से ये भी पीता है (33) और अगर कहीं तुम लोगों ने अपने ही से आदमी की इताअत कर ली तो तुम ज़रुर घाटे में रहोगे (34) क्या ये शख़्स तुमसे वायदा करता है कि जब तुम मर जाओगे और (मर कर) सिर्फ़ मिट्टी और हड्डियाँ (बनकर) रह जाओगे तो तुम दुबारा जि़न्दा करके क़ब्रो में से निकाले जाओगे (है है अरे) जिसका तुमसे वायदा किया जाता है (35) बिल्कुल (अक़्ल से) दूर और क़यास से बईद है (दो बार जि़न्दा होना कैसा) बस यही तुम्हारी दुनिया की जि़न्दगी है (36) कि हम मरते भी हैं और जीते भी हैं और हम तो फिर (दुबारा) उठाए नहीं जाएँगे हो न हो ये (सालेह) वह शख़्स है जिसने खुदा पर झूठ मूठ बोहतान बाँधा है (37) और हम तो कभी उस पर इमान लाने वाले नहीं (ये हालत देखकर) सालेह ने दुआ की ऐ मेरे पालने वाले चूँकि इन लोगों ने मुझे झुठला दिया (38) तू मेरी मदद कर ख़ुदा ने फरमाया (एक ज़रा ठहर जाओ) (39) अनक़रीब ही ये लोग नादिम व परेशान हो जाएँगे (40) ग़रज़ उन्हें यक़ीनन एक सख़्त चिंघाड़ ने ले डाला तो हमने उन्हें कूडे़ करकट (का ढे़र) बना छोड़ा पस ज़ालिमों पर (ख़ुदा की) लानत है (41) फिर हमने उनके बाद दूसरी क़ौमों को पैदा किया (42) कोई उम्मत अपने वक़्त मुर्क़रर से न आगे बढ़ सकती है न (उससे) पीछे हट सकती है (43) फिर हमने लगातार बहुत से पैग़म्बर भेजे (मगर) जब जब किसी उम्मत का पैग़म्बर उन के पास आता तो ये लोग उसको झुठलाते थे तो हम भी (आगे पीछे) एक को दूसरे के बाद (हलाक) करते गए और हमने उन्हें (नेस्त व नाबूद करके) अफ़साना बना दिया तो इमान न लाने वालो पर ख़ुदा की लानत है (44) फिर हमने मूसा और उनके भाई हारुन को अपनी निशानियों और वाज़ेए व रौशन दलील के साथ फ़िरऔन और उसके दरबार के उमराओं के पास रसूल बना कर भेजा (45) तो उन लोगो ने शेख़ी की और वह थे ही बड़े सरकश लोग (46) आपस मे कहने लगे क्या हम अपने ही ऐसे दो आदमियों पर इमान ले आएँ हालाँकि इन दोनों की (क़ौम की) क़ौम हमारी खि़दमत गारी करती है (47) गरज़ उन लोगों ने इन दोनों को झुठलाया तो आखि़र ये सब के सब हलाक कर डाले गए (48)और हमने मूसा को किताब (तौरैत) इसलिए अता की थी कि ये लोग हिदायत पाएँ (49) और हमने मरियम के बेटे (ईसा) और उनकी माँ को (अपनी क़ुदरत की निशानी बनाया था) और उन दोनों को हमने एक ऊँची हमवार ठहरने के क़ाबिल चश्मे वाली ज़मीन पर (रहने की) जगह दी (50) और मेरा आम हुक्म था कि ऐ (मेरे पैग़म्बर) पाक व पाकीज़ा चीज़ें खाओ और अच्छे अच्छे काम करो (क्योंकि) तुम जो कुछ करते हो मैं उससे बख़ूबी वाकि़फ हूँ (51) (लोगों ये दीन इस्लाम) तुम सबका मज़हब एक ही मज़हब है और मै तुम लोगों का परवरदिगार हूँ (52) तो बस मुझी से डरते रहो फिर लोगों ने अपने काम (में एख़तिलाफ करके उस) को टुकड़े टुकड़े कर डाला हर गिरोह जो कुछ उसके पास है उसी में नेहाल नेहाल है (53) तो (ऐ रसूल) तुम उन लोगों को उन की ग़फलत में एक ख़ास वक़्त तक (पड़ा) छोड़ दो (54) क्या ये लोग ये ख़्याल करते है कि हम जो उन्हें माल और औलाद में तरक़्क़ी दे रहे है तो हम उनके साथ भलाईयाँ करने में जल्दी कर रहे है (55) (ऐसा नहीं) बल्कि ये लोग समझते नहीं (56) उसमें शक नहीं कि जो लोग अपने परवरदिगार की दहशत से लरज़ रहे है (57) और जो लोग अपने परवरदिगार की (क़ुदरत की) निशानियों पर इमान रखते हैं (58) और अपने परवरदिगार का किसी को शरीक नही बनाते (59) और जो लोग (ख़ुदा की राह में) जो कुछ बन पड़ता है देते हैं और फिर उनके दिल को इस बात का खटका लगा हुआ है कि उन्हें अपने परवरदिगार के सामने लौट कर जाना है (60) (देखिये क्या होता है) यही लोग अलबत्ता नेकियों में जल्दी करते हैं और भलाई की तरफ (दूसरों से) लपक के आगे बढ़ जाते हैं (61) और हम तो किसी शख़्स को उसकी क़ूवत से बढ़के तकलीफ देते ही नहीं और हमारे पास तो (लोगों के आमाल की) किताब है जो बिल्कुल ठीक (हाल बताती है) और उन लोगों की (ज़र्रा बराबर) हक़ तलफी नहीं की जाएगी (62) उनके दिल उसकी तरफ से ग़फलत में पडे़ हैं इसके अलावा उन के बहुत से आमाल हैं जिन्हें ये (बराबर किया करते है) और बाज़ नहीं आते (63) यहाँ तक कि जब हम उनके मालदारों को अज़ाब में गिरफ्तार करेंगे तो ये लोग वावैला करने लगेंगें (64) (उस वक़्त कहा जाएगा) आज वावैला मत करों तुमको अब हमारी तरफ से मदद नहीं मिल सकती (65) (जब) हमारी आयतें तुम्हारे सामने पढ़ी जाती थीं तो तुम अकड़ते किस्सा कहते बकते हुए उन से उलटे पाँव फिर जाते (66) तो क्या उन लोगों ने (हमारी) बात (कु़रआन) पर ग़ौर नहीं किया (67) उनके पास कोई ऐसी नयी चीज़ आयी जो उनके अगले बाप दादाओं के पास नहीं आयी थी (68) या उन लोगों ने अपने रसूल ही को नहीं पहचाना तो इस वजह से इन्कार कर बैठे (69) या कहते हैं कि इसको जुनून हो गया है (हरगिज़ उसे जुनून नहीं) बल्कि वह तो उनके पास हक़ बात लेकर आया है और उनमें के अक्सर हक़ बात से नफ़रत रखते हैं (70) और अगर कहीं हक़ उनकी नफ़सियानी ख़्वाहिश की पैरवी करता है तो सारे आसमान व ज़मीन और जो लोग उनमें हैं (सबके सब) बरबाद हो जाते बल्कि हम तो उन्हीं के तज़किरे (जिब्राईल के वास्ते से) उनके पास लेकर आए तो यह लोग अपने ही तज़किरे से मुँह मोड़तें हैं (71) (ऐ रसूल) क्या तुम उनसे (अपनी रिसालत की) कुछ उजरत माँगतें हों तो तुम्हारे परवरदिगार की उजरत उससे कही बेहतर है और वह तो सबसे बेहतर रोज़ी देने वाला है (72) और तुम तो यक़ीनन उनको सीधी राह की तरफ़ बुलाते हो (73) और इसमें शक नहीं कि जो लोग आखि़रत पर इमान नहीं रखते वह सीधी राह से हटे हुए हैं (74) और अगर हम उन पर तरस खायें और जो तकलीफें उनको (कुफ्र की वजह से) पहुँच रही हैं उन को दफ़ा कर दें तो यक़ीनन ये लोग (और भी) अपनी सरकशी पर अड़ जाए और भटकते फिरें (75) और हमने उनको अज़ाब में गिरफ्तार किया तो भी वे लोग न तो अपने परवरदिगार के सामने झुके और गिड़गिड़ाएँ (76) यहाँ तक कि जब हमने उनके सामने एक सख़्त अज़ाब का दरवाज़ा खोल दिया तो उस वक़्त फ़ौरन ये लोग बेआस होकर बैठ रहे (77) हालाँकि वही वह (मेहरबान खु़दा) है जिसने तुम्हारे लिए कान और आँखें और दिल पैदा किये (मगर) तुम लोग हो ही बहुत कम शुक्र करने वाले (78) और वह वही (ख़ुदा) है जिसने तुम को रुए ज़मीन में (हर तरफ़) फैला दिया और फिर (एक दिन) सब के सब उसी के सामने इकट्ठे किये जाओगे (79) और वही वह (ख़ुदा) है जो जिलाता और मारता है कि और रात दिन का फेर बदल भी उसी के एख़्तियार में है तो क्या तुम (इतना भी) नहीं समझते (80) (इन बातों को समझें ख़ाक नहीं) बल्कि जो अगले लोग कहते आए वैसी ही बात ये भी कहने लगे (81) कि जब हम मर जाएँगें और (मरकर) मिट्टी (का ढ़ेर) और हड्डियाँ हो जाएँगें तो क्या हम फिर दोबारा (क्रबों से जि़न्दा करके) निकाले जाएँगे (82) इसका वायदा तो हमसे और हमसे पहले हमारे बाप दादाओं से भी (बार हा) किया जा चुका है ये तो बस सिर्फ़ अगले लोगों के ढकोसले हैं (83) (ऐ रसूल) तुम कह दो कि भला अगर तुम लोग कुछ जानते हो (तो बताओ) ये ज़मीन और जो लोग इसमें हैं किस के हैं वह फ़ौरन जवाब देगें ख़ुदा के (84) तुम कह दो कि तो क्या तुम अब भी ग़ौर न करोगे (85) (ऐ रसूल) तुम उनसे पूछो तो कि सातों आसमानों का मालिक और (इतने) बड़े अर्श का मालिक कौन है तो फ़ौरन जवाब देगें कि (सब कुछ) खु़दा ही का है (86) अब तुम कहो तो क्या तुम अब भी (उससे) नहीं डरोगे (87) (ऐ रसूल) तुम उनसे पूछो कि भला अगर तुम कुछ जानते हो (तो बताओ) कि वह कौन शख़्स है- जिसके एख़्तेयार में हर चीज़ की बादशाहत है वह (जिसे चाहता है) पनाह देता है और उस (के अज़ाब) से पनाह नहीं दी जा सकती (88) तो ये लोग फ़ौरन बोल उठेंगे कि (सब एख़्तेयार) ख़ुदा ही को है- अब तुम कह दो कि तुम पर जादू कहाँ किया जाता है (89) बात ये है कि हमने उनके पास हक़ बात पहुँचा दी और ये लोग यक़ीनन झूठे हैं (90) न तो अल्लाह ने किसी को (अपना) बेटा बनाया है और न उसके साथ कोई और ख़ुदा है (अगर ऐसा होता) उस वक़्त हर खु़दा अपने अपने मख़लूक़ को लिए लिए फिरता और यक़ीनन एक दूसरे पर चढ़ाई करता (91) (और ख़ूब जंग होती) जो जो बाते ये लोग (ख़ुदा की निस्बत) बयान करते हैं उस से ख़ुदा पाक व पाकीज़ा है वह पोशीदा और हाजि़र (सबसे) खु़दा वाकि़फ है ग़रज़ वह उनके शिर्क से (बिल्कुल पाक और) बालातर है (92) (ऐ रसूल) तुम दुआ करो कि ऐ मेरे पालने वाले जिस (अज़ाब) का तूने उनसे वायदा किया है अगर शायद तू मुझे दिखाए (93) तो परवरदिगार मुझे उन ज़ालिम लोगों के हमराह न करना (94) और (ऐ रसूल) हम यक़ीनन इस पर क़ादिर हैं कि जिस (अज़ाब) का हम उनसे वायदा करते हैं तुम्हें दिखा दें (95) और बुरी बात के जवाब में ऐसी बात कहो जो निहायत अच्छी हो जो कुछ ये लोग (तुम्हारी निस्बत) बयान करते हैं उससे हम ख़ूब वाकि़फ हैं (96) और (ये भी) दुआ करो कि ऐ मेरे पालने वाले मै शैतान के वसवसों से तेरी पनाह माँगता हूँ (97) और ऐ मेरे परवरदिगार इससे भी तेरी पनाह माँगता हूँ कि शयातीन मेरे पास आएँ (98) (और कुफ़्फ़ार तो मानेगें नहीं) यहाँ तक कि जब उनमें से किसी को मौत आयी तो कहने लगे परवरदिगार तू मुझे एक बार उस मुक़ाम (दुनिया) में छोड़ आया हूँ फिर वापस कर दे ताकि मै (अपकी दफ़ा) अच्छे अच्छे काम करूं (99) (जवाब दिया जाएगा) हरगिज़ नहीं ये एक लग़ो बात है- जिसे वह बक रहा और उनके (मरने के) बाद (आलमे) बरज़ख़ है (100) (जहाँ) क़ब्रों से उठाए जाएँगें (रहना होगा) फिर जिस वक़्त सूर फूँका जाएगा तो उस दिन न लोगों में क़राबत दारियाँ रहेगी और न एक दूसरे की बात पूछेंगे (101) फिर जिन (के नेकियों) के पल्लें भारी होगें तो यही लोग कामयाब होंगे (102) और जिन (के नेकियों) के पल्लें हल्के होंगें तो यही लोग है जिन्होंने अपना नुक़सान किया कि हमेशा जहन्नुम में रहेंगे (103) और (उनकी ये हालत होगी कि) जहन्नुम की आग उनके मुँह को झुलसा देगी और लोग मुँह बनाए हुए होगें (104) (उस वक़्त हम पूछेंगें) क्या तुम्हारे सामने मेरी आयतें न पढ़ी गयीं थीं (ज़रुर पढ़ी गयी थीं) तो तुम उन्हें झुठलाया करते थे (105) वह जवाब देगें ऐ हमारे परवरदिगार हमको हमारी कम्बख़्ती ने आज़माया और हम गुमराह लोग थे (106)
परवरदिगार हमको (अबकी दफ़ा ) किसी तरह इस जहन्नुम से निकाल दे फिर अगर दोबारा हम ऐसा करें तो अलबत्ता हम कुसूरवार हैं (107) ख़ुदा फरमाएगा दूर हो इसी में (तुम को रहना होगा) और (बस) मुझ से बात न करो (108) मेरे बन्दों में से एक गिरोह ऐसा भी था जो (बराबर) ये दुआ करता था कि ऐ हमारे पालने वाले हम इमान लाए तो तू हमको बक्श दे और हम पर रहम कर तू तो तमाम रहम करने वालों से बेहतर है (109) तो तुम लोगों ने उन्हें मसख़रा बना लिया-यहाँ तक कि (गोया) उन लोगों ने तुम से मेरी याद भुला दी और तुम उन पर (बराबर) हँसते रहे (110) मैने आज उनको उनके सब्र का अच्छा बदला दिया कि यही लोग अपनी(क़ातिर ख़्वाह) मुराद को पहुँचने वाले हैं (111) (फिर उनसे) ख़ुदा पूछेगा कि (आखि़र) तुम ज़मीन पर कितने बरस रहे (112) वह कहेंगें (बरस कैसा) हम तो बस पूरा एक दिन रहे या एक दिन से भी कम (113) तो तुम शुमार करने वालों से पूछ लो ख़ुदा फरमाएगा बेशक तुम (ज़मीन में) बहुत ही कम ठहरे काश तुम (इतनी बात भी दुनिया में) समझे होते (114) तो क्या तुम ये ख़्याल करते हो कि हमने तुमको (यूँ ही) बेकार पैदा किया और ये कि तुम हमारे हुज़ूर में लौटा कर न लाए जाओगे (115) तो ख़ुदा जो सच्चा बादशाह (हर चीज़ से) बरतर व आला है उसके सिवा कोई माबूद नहीं (वहीं) अर्शे बुज़ुर्ग का मालिक है (116) और जो शख़्स ख़ुदा के साथ दूसरे माबूद की भी परसतिश करेगा उसके पास इस शिर्क की कोई दलील तो है नहीं तो बस उसका हिसाब (किताब) उसके परवरदिगार ही के पास होगा (मगर याद रहे कि कुफ़्फ़ार हरगिज़ फलाह पाने वाले नहीं) (117) और (ऐ रसूल) तुम कह दो परवरदिगार तू (मेरी उम्मत को) बक्श दे और तरस खा और तू तो सब रहम करने वालों से बेहतर है (118)

(दुवा: ऐ हमारे पालने वाले जिस दिन (आमाल का) हिसाब होने लगे मुझको और मेरे माँ बाप को और सारे ईमानदारों को तू बख्श दे। आमीन)