Sunday, June 14, 2020

सूरए अल इनफितार 82


82 सूरए अल इनफितार

सूरए अल इनफितार मक्का में नाजि़ल हुआ और इसकी उन्नीस  आयतें हैं

ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है

जब आसमान तखऱ् जाएगा (1) और जब तारे झड़ पड़ेंगे (2) और जब दरिया बह (कर एक दूसरे से मिल) जाएँगे (3) और जब कब्रें उखाड़ दी जाएँगी (4) तब हर शख़्स को मालूम हो जाएगा कि उसने आगे क्या भेजा था और पीछे क्या छोड़ा था (5) इन्सान तुम अपने परवरदिगार के बारे में किस चीज़ ने धोका दिया (6) जिसने तुझे पैदा किया तो तुझे दुरूस्त बनाया और मुनासिब आज़ा दिए (7) और जिस सूरत में उसने चाहा तेरे जोड़ बन्द मिलाए (8) हाँ बात ये है कि तुम लोग जज़ा (के दिन) को झुठलाते हो (9) हालाँकि तुम पर निगेहबान मुक़र्रर हैं (10) बुज़ुर्ग लोग (फ़रिश्ते सब बातों को) लिखने वाले (केरामन क़ातेबीन) (11) जो कुछ तुम करते हो वह सब जानते हैं (12) बेषक नेको कार (बेहिश्त की) नेअमतों में होंगे (13) और बदकार लोग यक़ीनन जहन्नुम में जज़ा के दिन (14) उसी में झोंके जाएँगे (15) और वह लोग उससे छुप सकेंगे (16) और तुम्हें क्या मालूम कि जज़ा का दिन क्या है (17) फिर तुम्हें क्या मालूम कि जज़ा का दिन क्या चीज़ है (18) उस दिन कोई शख़्स किसी शख़्स की भलाई कर सकेगा और उस दिन हुक्म सिर्फ ख़ुदा ही का होगा (19)

 

(दुवा: ऐ हमारे पालने वाले जिस दिन (आमाल का) हिसाब होने लगे मुझको और मेरे माँ बाप को और सारे ईमानदारों को तू बख्श दे आमीन) 

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