Sunday, June 14, 2020

सूरए अत तीन 95


95 सूरए अत तीन

सूरए अत तीन मक्का में नाजि़ल हुआ और इसकी आठ (8) आयतें हैं

ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है

इन्जीर और ज़ैतून की क़सम (1) और तूर सीनीन की (2) और उस अमन वाले शहर (मक्का) की (3) कि हमने इन्सान बहुत अच्छे कैड़े का पैदा किया (4) फिर हमने उसे (बूढ़ा करके रफ़्ता रफ़्ता) पस्त से पस्त हालत की तरफ फेर दिया (5) मगर जो लोग ईमान लाए और अच्छे (अच्छे) काम करते रहे उनके लिए तो बे इन्तेहा अज्र सवाब है (6) तो ( रसूल) इन दलीलों के बाद तुमको (रोज़े) जज़ा के बारे में कौन झुठला सकता है (7) क्या ख़ुदा सबसे बड़ा हाकिम नहीं है (हाँ ज़रूर है) (8)

 

(दुवा: ऐ हमारे पालने वाले जिस दिन (आमाल का) हिसाब होने लगे मुझको और मेरे माँ बाप को और सारे ईमानदारों को तू बख्श दे आमीन)

 

 


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